Thursday, April 29, 2010

ट्रिक

जब समंदर को
देखा भी नहीं था
तब अमर चित्र कथा में
सिंदबाद जहाजी की यात्राएं पढ़कर
मोहल्ले के खेल जीत लिया करते थे
भले ही ये यकीन अदेखे और
अविश्वसनीय भूगोलों से आता था
पर शायद जिंदा इंसान का हौसला ही
इसे सच की तरह प्रस्तुत करता था

बड़ी ही तरतीब और करीने से
असंभव हौसला गढ़ा जा सकता है
सभी ज्ञात स्थापनाओं के बिलकुल समानांतर
और विपरीत
कुछ कुछ असंभव प्रेम की तरह
जिसकी शुरुआत होते ही
शुरू हो जाता है इसे
सरल किये जाने विश्वास

खेल में ही छला जाता है असंभव का व्यूह
हुडिनी दिखाता है
कि कई फीट पानी के नीचे भी
ताला लगे बक्से के बाहर
आया जा सकता है
बाद में जिसे हम एक ट्रिक के रूप में
व्याख्यायित करते हैं
शो के ठीक एक सेकण्ड बाद
हैरतंगेज़ रूप से आसान दिखते ही
तालियाँ बजाते हैं


एक ट्रिक
बहुत छोटी और बेहद सादी होकर भी
असंभव की धज्जियां उड़ा देती है
जादूगर के हैट से निकलते ही
यही असंभव कोने में पड़े
कबूतर से ज्यादा नहीं मालूम होता
असंभव हमेशा किसी ट्रिक से
या खेल से हार जाता है
एक खूबसूरत धोखा भी जिसे कह सकते हैं।

15 comments:

  1. वैसे आपकी कलम की जितनी तारीफ की जाये कम है. बहुत ही अच्छी रचना

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  2. aapne kavita ke maadhyam se bahut sahi baat kah di

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  3. बहुत अच्छी ...सधे हुए शब्दों में सुंदर रचना....

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  4. बड़ी ही तरतीब और करीने से
    असंभव हौसला गढ़ा जा सकता है
    सभी ज्ञात स्थापनाओं के बिलकुल समानांतर
    और विपरीत
    कुछ कुछ असंभव प्रेम की तरह
    जिसकी शुरुआत होते ही
    शुरू हो जाता है इसे
    सरल किये जाने विश्वास.


    khoobsurat, poori kavita hi badhiya hai magar in panktiyon ne sabse adhik prabhavit kiya hai.

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  5. ट्रिक से असम्भव नहीं हारता, बस उसे सम्भव के घर भेज देता है ।

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  6. वाह कहाँ से कहाँ ले गए .... शुरूआती लाइन तो बड़ी आशावादी हैं... मोहल्ले का खेल, समंदर और सिंदबाद सभी बढ़िया और बाद में तो काफी गूढ़ बातें पकड़ने लगे... कविता कई बार यही होती है लिंक कर देती है किसी निष्कर्ष से, किसी परिभाषा से.

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  7. आज कई कविताओं के बीच से होकर गुजर रहा हूँ.इत्तेफाक से तुम्हारा चौथा दरवाजा है ....बाहर की बारिश का भी असर है ओर पिछली कविताओं का भी .कमाल है के किसी ने भी रूमानी कविता नहीं लिखी है .सब की सब असल जिंदगी को टटोलकर उसमे से कुछ गिराती है ...कही लाउड नेस नहीं है ......कही खरोच के निशान भी नहीं ....फिर भी कुछ रिसता है ...



    बहुत छोटी और बेहद सादी होकर भी
    असंभव की धज्जियां उड़ा देती है
    जादूगर के हैट से निकलते ही
    यही असंभव कोने में पड़े
    कबूतर से ज्यादा नहीं मालूम होता
    असंभव हमेशा किसी ट्रिक से
    या खेल से हार जाता है
    एक खूबसूरत धोखा भी जिसे कह सकते हैं।

    one of your best lines in this .......
    and yes i miss you on blog....

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  8. बड़ी ही तरतीब और करीने से
    असंभव हौसला गढ़ा जा सकता है
    सभी ज्ञात स्थापनाओं के बिलकुल समानांतर
    और विपरीत
    कुछ कुछ असंभव प्रेम की तरह
    जिसकी शुरुआत होते ही
    शुरू हो जाता है इसे
    सरल किये जाने विश्वास

    कई बार पढ़ा जा चुका है इन पंक्तियों को और उन तरतीबोंको समझने की कोशिश की गयी..मगर आसान नही है सब..क्या है ट्रिक?..असंभव को संभव बना कर उसके अस्तित्व क्षीण कर देने की बात या उस असंभव को ’हूडविंक’ कर के, उसके परितः एक इल्यूज़न का जाल खड़ा कर देने की बात..!! और असंभव भी तो एक इल्यूज़न ही है..एक अदेखे सिंदबाद की अविश्वसनीय यात्राएं..तभी यह तरतीबें गढ़ी जाती हैं..इसी ’मिथ’ के समानांतर..मगर विपरीत..हर ट्रिक के पीछे भी यही ’कैच’ काम करता है....कोई छोटा सा मगर अनजाना सा अनसुलझा सा रहस्य..हूडिनी की ट्रिक जानने के बाद उसका रोमांच खत्म हो जायेगा..यही रहस्यजनित उत्सुकता ही असंभव को भी इतना रोमांचकारी बनाती है..

    आपकी देरआमद की कम्प्लेंट्स अक्सर पोस्ट्स की बेहतरीनी मे छुप जाती हैं..

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  9. पता नहीं, चमत्कार होते ही हैं। उनका अस्तित्व न हो, ऐसा भी नहीं है।

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  10. दो बार पढ़ी ... तब इसकी गूढ़ता को छु पाई हूँ और हमेशा याद रखने के लिए ले जा रही एक सच!

    असंभव हमेशा किसी ट्रिक से
    या खेल से हार जाता है

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  11. असंभव हमेशा किसी ट्रिक से
    या खेल से हार जाता है

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  12. कुछ कुछ असंभव प्रेम की तरह
    जिसकी शुरुआत होते ही
    शुरू हो जाता है इसे
    सरल किये जाने विश्वास.
    कितनी सरलता से आप्ने इतनी गूढ बात कह दी है
    बहुत उम्दा .

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  13. "पर शायद जिंदा इंसान का हौसला ही
    इसे सच की तरह प्रस्तुत करता था"
    यह पन्क्ति क्यों ? इसमें कही गयी बात ठीक है पर यह बाकी कविता से किस तरह जुड़ रही है .....एक बार फिर पढता हूं .....बहुत संभव है समझ न पाया होऊं !

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  14. सही कह रहें हैं आर्जव.कविता में निर्वाह होना ज़रूरी है.इसमें विचलन है.इसे ठीक करने के बजाय फिलहाल ऐसे ही रहने देता हूँ.शायद इसे कभी पूरा दुबारा लिख पाऊं.

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