tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post5238657628714897091..comments2024-01-03T11:43:51.116+05:30Comments on संजय व्यास: नाच(फिर से)sanjay vyashttp://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-88300829966321919422015-03-04T20:52:40.687+05:302015-03-04T20:52:40.687+05:30पढ़ते-पढ़ते कई जगहों पर लगा कि बस अब हुई शुरू कोई कह...पढ़ते-पढ़ते कई जगहों पर लगा कि बस अब हुई शुरू कोई कहानी। कई मोड़ों पर तो मन मेँ कहानी स्वरूप ग्रहण भी करने लगी। पर पूरा शब्द-चित्र एक केनवास और कलर-प्लेट बन गए। जिसे जैसा चित्र बनाना हो बनाले। Ehsashttps://www.blogger.com/profile/03321745395844613186noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-80232366474085768172013-05-19T16:43:47.135+05:302013-05-19T16:43:47.135+05:30सच में इसे टूटना ही था.... हर सम्मोहन टूटता है ।सच में इसे टूटना ही था.... हर सम्मोहन टूटता है ।Dayanand Aryahttps://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-64516825305459656832013-05-17T18:10:59.848+05:302013-05-17T18:10:59.848+05:30उपलब्ध अंतरालों में अपनी स्मृतियों को खेलने का मौक...उपलब्ध अंतरालों में अपनी स्मृतियों को खेलने का मौका देती थी.उन स्मृतियों का नृत्य वो अकेली देखती थी.दर्शक उसका नाच देखते थे और वो अपने विगत को............नर्तकी के भावों में अच्छी तरह रच बस गए आप। बढ़िया, सुन्दर।Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.com