tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post5958946309600319628..comments2024-01-03T11:43:51.116+05:30Comments on संजय व्यास: कुछ और कवितायेँsanjay vyashttp://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-87121080475155381692012-05-16T09:24:58.771+05:302012-05-16T09:24:58.771+05:30बहुत गहरी कविताएं...बहुत गहरी कविताएं...दीपिका रानीhttps://www.blogger.com/profile/12986060603619371005noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-69186753487448152362012-05-15T00:16:35.851+05:302012-05-15T00:16:35.851+05:30बेहद खूबसूरत कवितायेँ और गहरी अभिव्यक्ति...बेहद खूबसूरत कवितायेँ और गहरी अभिव्यक्ति...लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-46611468424449537912012-05-13T17:09:55.345+05:302012-05-13T17:09:55.345+05:30दोनो कविताएं अच्छी लगीं।दोनो कविताएं अच्छी लगीं।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-88543923045234135142012-04-30T20:20:46.677+05:302012-04-30T20:20:46.677+05:30"बस प्रेम को थोड़ी ओट चाहिए"...अभी पढ़ कर..."बस प्रेम को थोड़ी ओट चाहिए"...अभी पढ़ कर लौटा हूँ। अब यह कविताएँ सम्मुख हैं।<br /><br />कविताओं पर कुछ कहना क्यों नहीं आता मुझे!..सोच रहा हूँ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-35017274294844601952012-04-25T11:43:29.713+05:302012-04-25T11:43:29.713+05:30वाह.....................
लाजवाब.................
...वाह.....................<br /><br />लाजवाब.................<br />दिल खुश हो गया ,,,,,<br /><br />उत्तम लेखन हेतु बधाई....<br /><br />अनुANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-33406691520329847032012-04-21T16:44:49.184+05:302012-04-21T16:44:49.184+05:30दोनों ही कविताएँ बहुत सुन्दर है, दूसरी अधिक पसंद आ...दोनों ही कविताएँ बहुत सुन्दर है, दूसरी अधिक पसंद आने की अपनी वजहें हैं.Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-86725882209662960812012-04-20T14:09:48.813+05:302012-04-20T14:09:48.813+05:30सुन्दर कविताएं . ...लेकिन मैं तो कहूँगा / चाहूँगा ...सुन्दर कविताएं . ...लेकिन मैं तो कहूँगा / चाहूँगा कि वो आती रहे . और वह अद्भुत, अनूठा , लगभग अप्राप्य क्षण बार बार जीवंत होता रहे .अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-29608653945860192852012-04-18T02:32:01.246+05:302012-04-18T02:32:01.246+05:30बहुत सहजता से दूध और पानी को अलग किया है और कविताय...बहुत सहजता से दूध और पानी को अलग किया है और कवितायें छोड़ जाती हैं महक एक्सपायरी डेट के बाद की प्यार की महक...neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-2519325887525112062012-04-17T01:21:51.362+05:302012-04-17T01:21:51.362+05:30दोनो कवितायें शब्दों के इस कैनवस पर आगे-पीछे इस रह...दोनो कवितायें शब्दों के इस कैनवस पर आगे-पीछे इस रहस्यमयी प्रेम नामक रंग के जुदा शेड्स का एक जादुई कंट्रास्ट रचती हैं..<br />..पहली कविता किसी बूढ़े समंदर की नमकीन थकी हुई लहरों की कराह की तरह है..जिसमे हजारों बरस से अनगिन नदियों संग बह कर आये जिंदगी के तजुर्बों का इतना नमक इकट्ठा हो गया हो..जिसे कि वक्त के बादल भी उड़ा कर अपने संग नही ले गये!..अंतहीन इंतजार की आदत के संग इस समंदर की रगों मे इतना खारापन इकट्ठा हो गया है जिसके लिये समंदर को सोखे जाने के सिवा बाहर आने का कोई और रास्ता नही है!..रास्ते भी तो प्रतीक्षा करते होंगे उन कदमों की वापसी की आहट का..जो कभी उनसे गुजर कर उस पार गये थे..और इस वापसी के रास्ते मे इंतजार के साथ साथ तंजदिली के कितने खार, विस्मृतियों की कितनी खरपतवार, मूक सवालों की कितनी राख जमा हो गयी होगी...मगर ’एक्सपायरी डेट’ पार कर गये इंतजार के नैराश्य और फ़लतः जनित तल्खी के बीच ही कविता की अंतिम पंक्ति मे ’इस तरह’ की घुसपैठ एक प्रछन्न आशा मे टिमटिमाते किसी गूढ़ इशारे की ओर भी इशारा करता है..जिसका विस्तार कविता के अगले ’सीक्वेल’ मे किया जायेगा...ऐसा हमारा भरोसा है... <br />..दूसरी कविता कविता का नैराश्य किसी तल्खी या आवेग की पैदाइश नही है..बल्कि वास्तविकता की सूखी रूढ़ जमीन के फ़टे हाथों की बदशक्ल लकीरो का तर्जुमा है..एक ऐसा क्रूर मगर अवश्यंभावी यथार्थ जो नियति के क्रूर हाथो पराजित नस्ल का भवितव्य है..जो अपनी बाकी उम्र नियति की गुलामी मे काटने को अभिशप्त है..जंगल की बरसात मे भीगी लकड़ी जब आग की चपेट मे आती है तो जलने की सबसे लंबी और क्रूर सजा उसी को मिलती है..अनवरत सुलगते धुँआते हुए झुलसते रहने की...मगर यहाँ कविता के अंत का आशावाद अधिक स्पष्ट और विश्वसनीय है..यही झेरनी है जो प्रेम के खारे समंदर को मीठे दरिया मे बदलने का जादू रखती है..<br />कुछ और और कविताओं की झेरनी की हमें भी जरूरत है.. :-)अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-79330902736457632122012-04-16T14:38:19.730+05:302012-04-16T14:38:19.730+05:30बढ़िया कवितायेँ संजय भाई!बढ़िया कवितायेँ संजय भाई!Ashok Pandehttps://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-77347716112178201372012-04-16T14:14:16.968+05:302012-04-16T14:14:16.968+05:30दूसरी कविता प्रेम की पीर और गहराई को मथने में सफल ...दूसरी कविता प्रेम की पीर और गहराई को मथने में सफल रही है. पहली कविता का मर्म भी बहुत गहरा है. पुरा स्म्रतियां अक्सर विचलित कर जाती है ऐसे में अच्छा है कि वो ना आए. शब्दों का चयन बेहद सुन्दर है. ऐसी सशक्त कविताएँ आजकल बेहद कम पढ़ने को मिलती हैं, दोनों ही कविताओं को पढ़कर काफी दिनों बाद कविता का सुख हासिल हुआ !!<br />साधुवाद संजय जी !Narendra Vyashttps://www.blogger.com/profile/12832188315154250367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-60359411017406761622012-04-15T23:30:53.984+05:302012-04-15T23:30:53.984+05:30वाह! आनंद आ गया.....वाह! आनंद आ गया.....लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-9325641149303534362012-04-15T22:51:35.940+05:302012-04-15T22:51:35.940+05:30और मेरे मन की जलवायु भी
बदल चुकी है..
kya wakayee ...और मेरे मन की जलवायु भी<br />बदल चुकी है..<br />kya wakayee jalvayu badal jati hai...achchi kavitaen.varshahttps://www.blogger.com/profile/03696490521458060753noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-42395342613466910322012-04-15T12:50:34.138+05:302012-04-15T12:50:34.138+05:30पर्वत सा बड़ा हृदय कहाँ से लायेंगे।पर्वत सा बड़ा हृदय कहाँ से लायेंगे।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-65676141747257010852012-04-15T11:30:07.752+05:302012-04-15T11:30:07.752+05:30मैं तो कहता हूँ मत आओ अब तुम
मेरी देहरी पर इस तरह....मैं तो कहता हूँ मत आओ अब तुम<br />मेरी देहरी पर इस तरह.<br /><br />बहुत सुंदर रचना ....किन्तु सूरज का उदय होना ....वायु का बहना .... नदिया का वेग ...और मन का आवेग ... ....कौन रोक पाया है ....?Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-20604814593913683612012-04-15T10:40:22.089+05:302012-04-15T10:40:22.089+05:30अभी तक तो पिछली पोस्ट का ही खुमार बरकरार है। इस बा...अभी तक तो पिछली पोस्ट का ही खुमार बरकरार है। इस बार कवि अलग मूड में है और जो सचाई की तरह आता ही है। दोनों ही कविताएं पसंद आईं मुझे तो।धीरेशhttp://ek-ziddi-dhun.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-31686916714303142892012-04-15T09:55:17.120+05:302012-04-15T09:55:17.120+05:30dusri kavita achchi likhi gayi hai.dusri kavita achchi likhi gayi hai.Ashishhttp://ashishcogitations.blogspot.in/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-22220294760078126652012-04-15T09:20:54.000+05:302012-04-15T09:20:54.000+05:30दूसरी कविता मुझे बेहद पसंद आयी....उस अद्रश्य सच को...दूसरी कविता मुझे बेहद पसंद आयी....उस अद्रश्य सच को सामने रखती है जो हर समय साथ चलता है पर जिसे कोई नहीं कहता .सुख के पोखर में अकेली मछली सा .....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-30462454047078890462012-04-15T07:15:02.147+05:302012-04-15T07:15:02.147+05:30मैं तो कहता हूँ मत आओ अब तुम
मेरी देहरी पर इस तरह....मैं तो कहता हूँ मत आओ अब तुम<br />मेरी देहरी पर इस तरह.<br />---<br />अच्छा हुआ जो लड़की जिद्दी है अपनी तरह...वरना इस तरह कहने पर शायद वाकई उस देहरी पर कभी न जाती. <br />'मत आओ' तब तक अधूरा है जब तक वो देहरी पर वापस आ नहीं जाती...इस कहने की सार्थकता उसे उसके अनगिन, बेवजह कामों से खींच कर देहरी पर लाने में ही है. <br /><br />कितनी खूबसूरत कविता है...और जीवन की तरह आगे बढती है...टाइमलाइन पर...लीनियर...कोई हिचकोला नहीं...नैसर्गिक खूबसूरती...जंगल में खिले दुर्लभ फूलों की तरह. <br /><br />और इन सबसे खूबसूरत ये बिम्ब 'जंग खा चुका बवंडर'...इसे लिखने के लिए शायद पीली रेत का बवंडर देखना जरूरी होता होगा...या कि जैसलमेर जैसे पीले पत्थरों के शहर में कभी रहना. <br />---<br />काश कि मेरे पास कुछ बहुत खूबसूरत शब्द होते...ताकि मैं सलीके से लिख पाती कि कविताएं कितनी अच्छी लगी मुझे.Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.com