tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post8721641578295668154..comments2024-01-03T11:43:51.116+05:30Comments on संजय व्यास: नील लोकsanjay vyashttp://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-37113873071953875252010-08-07T06:37:34.873+05:302010-08-07T06:37:34.873+05:30वो फिर किसी किनारे से आ लगेगा. उसे फिर विस्थापन के...<b>वो फिर किसी किनारे से आ लगेगा. उसे फिर विस्थापन के विरुद्ध लड़ना होगा. आखिर धरती के युद्ध धरती पर ही लड़े जायेंगे।</b><br />... या शायद युद्ध के बिना - प्रेम से ही स्वीकृत और स्थापित हो जाये. आखिर प्रेम भी अभी तक मरा नहीं है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-15255714766252871252010-07-29T20:12:00.719+05:302010-07-29T20:12:00.719+05:30Good blog is this.Good blog is this.Kannanhttp://usefulcookingtips.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-65703227927503702472010-07-23T09:10:38.237+05:302010-07-23T09:10:38.237+05:30आपका लेख जनसत्ता के आज के संस्करण में छपा है. हार्...आपका लेख जनसत्ता के आज के संस्करण में छपा है. हार्दिक शुभकामनाएँ.<br /><br />http://www.jansattaraipur.com/Shah Nawazhttps://www.blogger.com/profile/01132035956789850464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-38203932756857219672010-07-23T07:43:53.744+05:302010-07-23T07:43:53.744+05:30आज दिनांक 23 जुलाई 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपा...आज दिनांक 23 जुलाई 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट इसी शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए <a href="http://www.jansattaraipur.com/" rel="nofollow">जनसत्ता</a> पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-43361748069746643072010-07-11T16:59:41.104+05:302010-07-11T16:59:41.104+05:30kya baat hai sir ....shandarkya baat hai sir ....shandarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-89156379724620131062010-06-26T23:46:57.984+05:302010-06-26T23:46:57.984+05:30उसे लगता था कि तमाम निर्दयताओं की बावजूद समुद्र आद...उसे लगता था कि तमाम निर्दयताओं की बावजूद समुद्र आदमी से खेल ही करता है और जीवन के विरुद्ध तमाम संघर्षों के लिए उत्तरदायी होने के बाद भी उसमें ज़रूरी तरलता बचाए रखता है. वैसे भी अंततः किसी भी तरह के जीवन का पहला घर समुद्र ही है. <br /><br />बढियाप्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-33267826448771044202010-06-26T13:43:28.653+05:302010-06-26T13:43:28.653+05:30"शाम के ढलने का वक्त था. समुद्री आकाश जल-पक्ष..."शाम के ढलने का वक्त था. समुद्री आकाश जल-पक्षियों से आच्छादित था.एक अंतहीन विस्तार में प्रेम की भाषा कौंध रही थी.जीवन के संघर्ष प्रेम की प्रदीप्ति के आगे अपने ताप को अस्थायी तौर पर छोड़ चुके थे.कल उसके लौटने का दिन था. वो फिर किसी किनारे से आ लगेगा. उसे फिर विस्थापन के विरुद्ध लड़ना होगा. आखिर धरती के युद्ध धरती पर ही लड़े जायेंगे।"<br />इस विलक्षण शिल्प की बार बार उन्ही घिसे-पिटे शब्दों से तारीफ़ करना सूरज को टार्च दिखाने जैसा निरर्थक होगा..बस यही कि यह ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत मे एक दुर्लभ अनुभव जैसा है..सेहरा मे ओएसिस जैसा....<br />..कितना अच्छा हो अगर ऐसे सारे नील-लोक के जादुई बिम्ब एक और लम्बी व सम्पूर्ण कहानी मे गूँथे जायें..कितनी अद्भुत होगी वह कथा और उसे पढ़ पाने का अनुभव....अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-36790671570908499072010-06-25T14:26:35.589+05:302010-06-25T14:26:35.589+05:30’नील लोक’में यथार्थ-मनन,चिंतन,कल्पना-फ़िर ज़मीनी हकी...’नील लोक’में यथार्थ-मनन,चिंतन,कल्पना-फ़िर ज़मीनी हकीकत से रूबरू करवाने का लेखकीय धर्म निभा कर मुझे पाठक बनाने का शुक्रिया संजय जी.शैली की सहजता आपकी खूबी है..बधाई.राजेश चड्ढ़ाhttps://www.blogger.com/profile/13615403040017262901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-31477893706153318202010-06-23T21:05:19.333+05:302010-06-23T21:05:19.333+05:30jad dharati ki seema ki tulana me taral samudra ke...jad dharati ki seema ki tulana me taral samudra ke sath drishti ka swabhavik vistar rochak aur romanchak bhi hai. badhai. baraste mallar yaha tak pahucha.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-46332549656588817072010-06-18T10:38:52.829+05:302010-06-18T10:38:52.829+05:30दिम्माग के तंतुओ को जाग्रत करना.. यही तो हुआ है मे...दिम्माग के तंतुओ को जाग्रत करना.. यही तो हुआ है मेरे साथ.. नील लोक के समीप बैठे जोड़ो का पारदर्शी हो जाना.. मन से मन मिलते तो है पर इसी समुन्द्र के खाली पानी से भावनाए धुल भी जाती है.. इन रिश्तो के टूटने की अदालती कार्वाहियो में समुद्र की गवाही काम नहीं आती.. वरना यदि गोता लगाया जाए इसमें तो कई सारे राज मिल जायेंगे.. कितनी ही सभ्यताए कितनी ही संसकृतिया समेटेहुए नील लोक कभी क्रोधित तो कभी शांत रहकर अपनी भावनाए व्यक्त करता है.. इनको समझ पाने का हुनर आप जैसे हुनरमंद ही कर सकते है..<br /><br />कई बार आपको पढ़कर अन्दर ही अन्दर लौटने की एक प्रक्रिया होती है..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-88386536901082062332010-06-17T02:13:52.185+05:302010-06-17T02:13:52.185+05:30दिल और दीमाग के तंतुओं को जाग्रत करती हुई पोस्ट नी...दिल और दीमाग के तंतुओं को जाग्रत करती हुई पोस्ट नील लोक में बहा लेगी .... धरती पर विस्थापित होते ही सब गड़बड़...neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-33517207858672474012010-06-16T19:01:53.277+05:302010-06-16T19:01:53.277+05:30सभ्यता के दीप....समंदर में स्मृतियाँ मछलिया सी......सभ्यता के दीप....समंदर में स्मृतियाँ मछलिया सी......आदमी को ढूंढना ओर उसमे ज़रूरी तरलता बचाए रखना इन दिनों बड़ा मुश्किल है .....नमक का संतुलन भी .के कही कडवा न हो जाये ....<br />कहते है समंदर भी अब क्रोधित होता है ....ओर धरती को जैसे अपनी उपस्तिथि दिखाने को...जैसे युद्ध मेरे यहाँ भी लड़ा जा सकता है कहने ..<br />कहने को ढेर सारा है ....इस संक्षिप्त नोट में.....<br /> .ढूंढो तो हर बार सर्जरी की किताब की तरह कुछ नया मिल जाता है ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-68653198736865194932010-06-16T14:35:09.070+05:302010-06-16T14:35:09.070+05:30सबकी अपनी खुशबू हुआ करती है और मुझे लगता है कि आपक...सबकी अपनी खुशबू हुआ करती है और मुझे लगता है कि आपके शब्द जब इस तरह की शक्ल में ढलते हैं तब सबसे अधिक महकते हैं. बहुत सी पुरानी रचनाओं में इसी खूबसूरती ने मुझ से पाठक को बाँध कर रखा है. एक सोच के कुछ पलों से इतनी गंभीर बातों का प्रकटीकरण इस रचना को बार बार पढ़ने लायक बना रहा है. बहुत अच्छा. बधाई.के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-36489691296182467972010-06-15T09:01:46.061+05:302010-06-15T09:01:46.061+05:30aapne bahut sunndar shabdon men iss poori duniya k...aapne bahut sunndar shabdon men iss poori duniya ka sach likha . .gareebi ameeree ki khhayi tahas nahas kar rahi hai lekin haq ke liye ladaayi jaari hi rahegi ..isi dharati par .aapko . badhayi ..प्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-52002779347509036152010-06-15T08:59:52.022+05:302010-06-15T08:59:52.022+05:30बहुत दिनों के बाद आपको पढना अच्छा लगा.... यह पोस्ट...बहुत दिनों के बाद आपको पढना अच्छा लगा.... यह पोस्ट अच्छी लगी.... और आप कैसे हैं?डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-85588059064243484602010-06-15T08:33:47.106+05:302010-06-15T08:33:47.106+05:30badhiya shabdon se susajjit aalekh...badhiya shabdon se susajjit aalekh...दिलीपhttps://www.blogger.com/profile/15304203780968402944noreply@blogger.com