tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post6724564653223637135..comments2024-01-03T11:43:51.116+05:30Comments on संजय व्यास: बस की लय को पकड़ते हुएsanjay vyashttp://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-1805008090994283552010-07-05T16:52:14.585+05:302010-07-05T16:52:14.585+05:30प्याज की पकोड़ी और चाय का आनंद ही अलग है. एक एक शब्...प्याज की पकोड़ी और चाय का आनंद ही अलग है. एक एक शब्द जैसे एक एक फरमे बना रहा हो किसी फिल्म का.<br /><br />अत्यंत सुन्दर. <br /><br />रिगार्ड्स<br />मनोज खत्रीManoj Khttps://www.blogger.com/profile/06707542140412834778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-43682241114356646132010-02-24T10:21:16.278+05:302010-02-24T10:21:16.278+05:30बस की लय शीर्षक से आज 24 फरवरी 2010 को दैनिक जनसत्...बस की लय शीर्षक से आज 24 फरवरी 2010 को दैनिक जनसत्ता के समांतर स्तंभ में पेज 6 पर प्रकाशित है आपकी यह मनभावन पोस्ट। बधाई स्वीकारें।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-18788712443258202572010-01-27T09:36:32.736+05:302010-01-27T09:36:32.736+05:30देर से आया, देर सा पढ़ा, इस शब्द-चित्र के आनंद से ...देर से आया, देर सा पढ़ा, इस शब्द-चित्र के आनंद से देर तक वंचित रहा.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-91628247745739878452010-01-24T09:08:14.238+05:302010-01-24T09:08:14.238+05:30भाई संजय जी, लम्बे समय से ब्लॉग पर अनुपस्थिति के ल...भाई संजय जी, लम्बे समय से ब्लॉग पर अनुपस्थिति के लिए माफी चाहता हूँ. आपकी पोस्ट पर किशोर जी की बात में यही जोड़ना चाहता हूँ कि लय हासिल करने में लगन या कि जुनून का भी बड़ा योगदान होता है. बहुत अच्छा लगा आपको पढ़ते हुए.Atmaram Sharmahttps://www.blogger.com/profile/11944064525865661094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-29039847637922420012010-01-21T22:54:13.454+05:302010-01-21T22:54:13.454+05:30बस की लय..या बेबस सी लय!
आते ही पढ़ लिया था इस पोस्...बस की लय..या बेबस सी लय!<br />आते ही पढ़ लिया था इस पोस्ट को..और कुछ सूझा नही था कि क्या कहूँ..प्याज की पकौड़ियों के अलावा....सो लगा कि फ़ुर्सत चाहिये होगी आपसे कुछ कहने के लिये..सो अब आया हूँ<br />आपके ब्लॉग का एक अलहदा रंग है..एक अलहदा अंदाज..जो इसे विशिष्ट बनाता है..अद्वितीय..ऐसा लगता है जैसे कि स्कूल से वापस आते उत्सुक बच्चे ने रास्ते चलते वक्त को ’स्टेच्यू’ बोल दिया हो....और इसी बीच हरसिंगार के पेड़ तले से एक-एक अधखिला लम्हा चुन कर सजा दिया हो कहीं तकनीक के भोजपत्र पर..आपकी रचनाओं मे समय डायनमिक नही वरन् ’स्टेटिक’ होता है..किसी झील की सतह पर ठहरा हुआ..अवाक्!..और उस ठहरे हुए लम्हे की खूबसूरती..सारे रंग और महक बिखर जाती है..पूरी फ़िजा मे..उस क्षणिक दृश्य का अपार विस्तार, समग्र वैभव, चमत्कृत करता सा..शायद यही है जिसे आइंस्टीन ने रिलेटिवटी कहा था!!..और वह ’पॉज्ड’ शॉट चाहे नृत्य से उठे अर्धवर्तुल भँवर का हो, बस के शाश्वत लयबद्ध सफ़र का एक क्षणिक स्टॉप हो, खिड़की का क्षण भर की स्वप्निल सौन्दर्य, या एक रिश्ते के मुक्तिकरण आयोजन के मध्य मे कॉफ़ी का घूँट..सब एक ’क्षण’ का अथाह-अगम्य-अनिर्वचनीय सौन्दर्य!!<br />..और क्या कहूँ..बस लय बनी रहे बस मे!!!अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-83382373497726596762010-01-21T10:24:58.125+05:302010-01-21T10:24:58.125+05:30लगा कि एक साधनारत कैमरामैन अपने किसी अलौकिक कैमरे ...लगा कि एक साधनारत कैमरामैन अपने किसी अलौकिक कैमरे के संग चलती बस की खिड़की से पूरा दृश्य उतारता चला जा रहा है और साथ ही हमें भी दिखाता चला जा रहा है।...अलौकिक कैमरा इसलिये कि साधारण आँखों से तो इन दृश्यों को देखना संभव नहीं...<br /><br />मजे की बात ये है कि ये अलौकिक कैमरा तो असल में एक जादूई कलम है। कलम या तूलिका...???गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-42657475446238514202010-01-19T22:26:36.640+05:302010-01-19T22:26:36.640+05:30व्यासजी,
रफ़्तार में तेजी पीछे छूटते हुए परिदृश्य औ...व्यासजी,<br />रफ़्तार में तेजी पीछे छूटते हुए परिदृश्य और सरोकारों को बड़ी कुशलता से शब्दों में बंधा है आपने बन्धु ! सलीके से परोसा है इस छोटी-सी यात्रा-कथा को !! लगता है, संवेदना के तल पर गहरे गड़े हैं अहसासों के नुकीले शूल ! बधाई !!<br />सप्रीत--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-19490142167483840092010-01-19T18:37:10.308+05:302010-01-19T18:37:10.308+05:30लाइव कमेंट्री, आँखों देखा हाल, और बस गुज़रती हुई ल...लाइव कमेंट्री, आँखों देखा हाल, और बस गुज़रती हुई लगी... सरपट... जब धुल हटती तो गाँव नज़र अत... विभिन्न संस्कृतियाँ नज़र आती और पूरी नींद से जगा सक्रिय लेखक भी जिसकी पैनी नज़र है सफ़र से ड्रायवर की हरकत तक... अतीत से वापस लौटने तकसागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-2771978283245155042010-01-19T15:47:45.269+05:302010-01-19T15:47:45.269+05:30एक रहस्य लोक की यात्रा... जहाँ 'महान हवाएं&quo...एक रहस्य लोक की यात्रा... जहाँ 'महान हवाएं" नहीं पहुँच पाईं हैं अभी तक.....अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-27617787190349827802010-01-19T11:22:07.304+05:302010-01-19T11:22:07.304+05:30बस की लय पकडनी हर किसी के बस में नहीं,बस का रवाना...बस की लय पकडनी हर किसी के बस में नहीं,बस का रवाना होना,रफ़्तार पकडना ,<br />अपने गंतव्य में दाखिल होना,सब लय में था कविता जैसे.डिम्पल मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07224725278715403648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-3474106160106559602010-01-19T05:57:04.537+05:302010-01-19T05:57:04.537+05:30मुझे समझ में नहीं आ रहा, क्या लिखूँ !
विलक्षण !
...मुझे समझ में नहीं आ रहा, क्या लिखूँ ! <br />विलक्षण ! <br />मैं जानता हूँ , बार-बार यात्रा करनी पड़ेगी मुझे यहाँ बस की लय पकड़ने के लिये ! <br />चितेरे ! संवेदना अपनी टुटपुँजिहा लगती है यहाँ आने के बाद ! <br /><br />आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-34593727881347278082010-01-19T02:04:57.229+05:302010-01-19T02:04:57.229+05:30हर स्टॉप पर बैठ कर चाय पी ..शहर और गाँव को छुआ और ...हर स्टॉप पर बैठ कर चाय पी ..शहर और गाँव को छुआ और शब्दों को महसूस किया..neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-49774413365478667792010-01-19T00:46:40.756+05:302010-01-19T00:46:40.756+05:30डॉ अनुराग और किशोर ने जो कहा है उसके बाद कहने की स...डॉ अनुराग और किशोर ने जो कहा है उसके बाद कहने की सीमा आ जाती है.बात लय या दृश्यावली तक नहीं रूकती है..किसी का चित्रण करना एक बात है पर उसका प्रभाव पाठक या दर्शक पर पड़ना दूसरी बात है...आपकी यह खासियत आपके लेखन की वह विशेषता है जो साहित्य में दुर्लभ है ...आप कामयाब लेखक ही नहीं संवेदनाओं और अनुभूतियों को गहराई से महसूस करा देने वाले जादूगर है...अद्भुत!प्रकाश पाखीhttps://www.blogger.com/profile/09425652140872422717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-7082759896794338272010-01-18T21:08:36.702+05:302010-01-18T21:08:36.702+05:30कुछ शब्दों में कैसे रेगिस्तान को उकेरा जाये, ये सी...कुछ शब्दों में कैसे रेगिस्तान को उकेरा जाये, ये सीखने के लिए आपकी पोस्ट्स पर्याप्त आधार हैं. मैंने इसे पढ़ कर फिर से पढ़ा है तो लगा कि आपने सच में बस की लय नहीं वरन लय में बस को पकड़ रखा है. कूटल की बात हो या रात और दिन से जिस तरह आपके शब्द क़स्बे को परिभाषित करते हैं वह अद्भुत है.<br />अब मौसम यहाँ अच्छा है आ जाओ... झांपली के जिप्सी बुला रहे हैं, लोकगीत सुनेंगे और धोरों पर सो जायेंगे. कुछ रिकार्डिंग और वीडियो भी हो जायेगा उसी जादुई बस के सफ़र के साथ. संजय भी वो दोहा हैं कि " सजन शरीर सोंखड़ी पिया नहीं मिलन रो जोग, नैणा मुजरो मानजो चुगलिगारो लोक " बस ऐसे ही इस चुगलखोर दुनिया को पता न चले इसलिए मेरी आँखों के इशारे को समझो और अभिवादन स्वीकार कर लो. फिर मैं तय समझूं कि जल्द ही बस का सफ़र होगा ?के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-32083620210234729652010-01-18T20:50:03.170+05:302010-01-18T20:50:03.170+05:30ख़यालों को पकड़ कर कागज पर उकेरने में आप महारथी है...ख़यालों को पकड़ कर कागज पर उकेरने में आप महारथी हैं.अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-43120542529406745412010-01-18T20:04:11.771+05:302010-01-18T20:04:11.771+05:30जानते हो...तुम्हारे पास एक कला है किसी वक़्त को खी...जानते हो...तुम्हारे पास एक कला है किसी वक़्त को खींच कर कागज पर रखने की.....कुछ ऐसी स्थिति की जिसमे से तुम गुजरते हो .ख्यालो के साथ ....वे ख्याल पकड़ना पाठक के लिए मुश्किल नहीं होता ....<br />well said sanjya.....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-83690296406365779542010-01-18T19:53:34.691+05:302010-01-18T19:53:34.691+05:30बस फिर से चल पड़ी है...पिछले स्टॉप पे प्याज की पकौड...बस फिर से चल पड़ी है...पिछले स्टॉप पे प्याज की पकौड़ियों का स्वाद अच्छा था...ओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9022177286561386168.post-80005337573486796842010-01-18T19:51:27.344+05:302010-01-18T19:51:27.344+05:30बस की लय को बहुत खूबसूरती से संजोया है....बस की लय को बहुत खूबसूरती से संजोया है....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.com