इस जगह के भीतर घुसते ही लगा जैसे निपट अनजान जगह आ गया हूँ। विश्व की सीमाओं से परे। क्या हुआ होगा?अघोरी या सिद्ध की तीव्र और आक्रामक भक्ति से ईश्वर की आत्मा में भारी कम्पन हुआ होगा और ये जगह देश और काल की तमाम सीमाओं को भेद कर एक नए ही आयाम में विन्यस्त हो गई होगी। भौतिकी के सारे नियम उल्टे लटक गए। एकदम बसावट के बीचोंबीच, पर किसी से पूछो की बस्ती कितनी दूर है तो शायद बताएगा सवा दो सौ साल दूर!पानी के बीच जैसे भंवर से उपजा खालीपन.या रेगिस्तान में स्थाई टिका हवा का वर्तुल.शोर के बीच अटकी चुप्पी.सारे विश्वासों को लीलता संशय.विघटन ही जहाँ स्थाई है।
यहाँ अंदर आते ही लगता है जैसे पृथ्वी भयानक गति से अपनी धुरी पर घूमती किसी अलक्ष्य की परिक्रमा कर रही है। कोई जल्दी है उसे। मैं घड़ी में समय देखता हूँ। घड़ी की सुइयां ऐंठ गई है।
सामने एक मन्दिर है। सवा दो सौ साल पहले बना।यही देखने मैं अपने मित्र गोविन्द त्रिवेदी के साथ आया हूँ। ये जोधपुर का महामंदिर है। मेरा इसके वातावरण में प्रवेश करने का विवरण अति यथार्थवादी आख्यान लग सकता है,पर जब कोई चारों और सघन बसावट के बीच इसके प्रवेश द्वार में घुसता है तो एक तीव्र विराग आपके सर पर चोट सा करता है.महाराजा मान सिंह जीके समय का बना ये मन्दिर जिस इलाके में है उस पूरे इलाके को महामंदिर कहा जाता है। मन्दिर की हालत काफ़ी ख़राब है.असल में ये नाथ सम्प्रदाय का एक मठ है,यहाँ पूजा पाठ इसी सम्प्रदाय की शिष्य परम्परा में से कोई एक ही कर सकता है.ये इस अर्थ में ब्राह्मण पूजा पद्धति से चलने वाले अन्य मंदिरों से भिन्न है। लंबे चौडे परिसर में राज्य सरकार का एक स्कूल भी इसके अंदर ही चलता है। परिसर के बीच स्थित है मन्दिर जिसमे जलंधर नाथ जी के चरण और मूर्ती है। यहाँ अंदर की भित्तियों पर आप नज़र डालें तो कई आश्चर्य जैसे एक साथ घटित होते है.
भित्तियों पर योगासनों की विभिन्न मुद्राओं में लीन साधकों के चित्र उकेरे गए है,जो अब फीके पड़ गएँ है पर फ़िर भी काफ़ी स्पष्ट है.मन्दिर वास्तु की दृष्टि से मूलतः तो हिंदू शैली का ही लगता है पर कई शैलियों का मिश्रण भी साफ़ झलकता है।जोधपुर के महाराजा मानसिंह का काल नाथ पंथियों के जोधपुर में उत्कर्ष का काल था,उनके ज़माने में हर सरकारी आदेश पर 'जलंधर नाथ जी सहाय छे' लिखा होता था. स्थानीय इतिहासकार प्रो.ज़हूर खान मेहर कहते है कि मानसिंह जी के समय नाथ पंथियों को राज्य संरक्षण के कारण उनका प्रभुत्व इतना बढ़ गया कि जोधपुर शहर में प्रभुत्व(दादागिरी)के लिए 'नाथावती'शब्द प्रचलित हो गया.
समकालीन परिप्रेक्ष्य से जैसे मैं एकदम से कट गया हूँ, बच्चे पढ़ रहें है, मैडम पढा रही है, कुछ बच्चे खेल रहें । ये सब जैसे भिन्न काल में एक ही स्थान पर समानांतर घट रहा है.गोविन्द जी पुजारी मोहन नाथ से बात चीत कर रहे थे,असल में यहाँ आने का असल मकसद तो गोविन्द जी का ही था मैं तो सहज जिज्ञासा के कारण उनके साथ टंग गया था. गर्भ गृह में भीतरी दीवारें योग को प्रतिष्ठित कर रही थी.एक चित्र में तो योगमुद्रा में सिद्ध के कुंडलित केश है. क्या ये बौद्ध प्रभाव है?
इस तरह के सवालों का उत्तर कोई विद्वान ही दे सकता है।मेरे मन में तो ये सब जिज्ञासा ही जगह सकता था.मुझे ये सब इतना विलक्षण लग रहा था कि मैं इसे न तो शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देख पा रहा था न ही एक श्रद्धालु के नज़रिए से.
वापसी में मुख्य द्वार से बाहर आते ही जैसे अहसास हुआ कि मैं अपना केंचुल अंदर छोड़ आया हूँ।ये दुनिया वही थी जिसे थोडी देर पहले छोड़ कर अन्दर गया था. परिचित.
(सभी चित्र लेखक द्वारा)
ईशान स्तम्भन्, नैऋत्य आकर्षन, वायव्य मोहन, आग्नेय वंशीकरण के पदचिन्हों के क्रम में आपने गोरख नाथजी एवं नाथ सम्प्रदाय के अनुगामी शक्तिस्थलों में से एक महामंदिर स्थित मठ को सिद्धि प्राप्ति भाषा से वर्णित किया है,काल के क्षय से घिरे चित्रों को आपकी पोस्ट ने भले ही कालजयी न किया हो किंतु इन्हे दीर्घायु बना दिया है .एक चित्र लेखक और उनके मित्र गोविन्द जी का होता तो मेरे जैसे पाठक उनको भी निहार लेते फ़िर भी सर्वाधिकार लेखक के अधीन है बधाई.
ReplyDeleteसचित्र जानकारी के लिए आभार।
ReplyDeleteनाथ संप्रदाय के इस मैथ की बहुत ही सुंदर वर्णन किया है. आप तो जोधपुर में ही रह रहे है. वहां के भित्ति चित्रों को संरक्षित किया जाना चाहिए. हो सके तो पुनः एक बार जाकर सभी चित्रों को दोचुमेंट कर/करवा लें. आपने केंचुली छोड़ आने की बात कही. हमारा पूछना है की आप कितनी बार और कितनी जगह केंचुली छोड़ पाएंगे. इस सुंदर लेख के लिए आभार.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
इन चित्रों का संरक्षण मुहिम के तहद होना जरूरी है। मैने बूंदी में भी अनेक भित्ति-चित्र देखे थे। वे कुछ बेहतर दशा में प्रतीत होते थे। पर वहां भी संरक्षण की दरकार थी।
ReplyDeleteबहुमूल्य पोस्ट।
bahut achhi jaankari dee hai. chitra bhi adbhut liye hain. badhayi.
ReplyDeleteआप चित्रों को साथ दे कर जो जानकारी देते है उसे पढ़ने में बहुत मज़ा आता है ।
ReplyDeleteऋतु महाजन ।
बहुत ही अच्छा लिखा है आपकी भाषा बात करती है पाठक से सभी चित्र पसंद आए कभी जोधपुर आउंगी तो जरूर देखूंगी.
ReplyDeleteBahut achchha likha hai aapne...
ReplyDeleteRegards
कितने साल बिता दिये जोधपुर में.. महामंदिर देखा भी घूमा भी पर इतनी बारीकि से नहीं... भासा कमाल कर दिया.. बहुत जोरदार चीज निकाल ने लाया.. जोधपुर से ऐसे ही अनछुऐ पहलुओ से अवगत कराते है.. आभार..
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लिखा है !
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लिखा है, सजीव चित्रण ....बधाई !!
ReplyDeleteईश्वर की आत्मा में भारी कम्पन हुआ होगा और ये जगह देश और काल की तमाम सीमाओं को भेद कर एक नए ही आयाम में विन्यस्त हो गई होगी। भौतिकी के सारे नियम उल्टे लटक गए। एकदम बसावट के बीचोंबीच, पर किसी से पूछो की बस्ती कितनी दूर है तो शायद बताएगा सवा दो सौ साल दूर!पानी के बीच जैसे भंवर से उपजा खालीपन.या रेगिस्तान में स्थाई टिका हवा का वर्तुल.शोर के बीच अटकी चुप्पी.सारे विश्वासों को लीलता संशय.विघटन ही जहाँ स्थाई है......Aapki shbad rachna ki dad deti hun....!!
ReplyDeleteऐतिहासिक धरोहरों को संलिप्त कर आपने सुन्दर टिप्पणी दी है । जानकारी के लिहाज से पढ़कर बहुत बढ़िया लगा । नई जानकारी हुई शु्क्रिया
ReplyDeletejodhpur ke mahamandir ke bare men ek nayee jankari hasil hui. chunki aap wahi ke hain is liye is tarah ki anya jankariyon ki bhi aapse ummid hai. chitr bhi sundar lage.
ReplyDeletekafee rochak aur achchhee jankariyan dene ke liye sadhuvad.
ReplyDelete"Ye duniyaa wahee thee.Parichit."
ReplyDeleteItnaa asardaar ant hai is yaadgaarkaa...sirf ek shabd.
must have visited jodhpur a 100 times, but never had been to any of the historical places.
ReplyDeletewould make it a point to visit this place as well.
you have added the extra puch in the last line as you always do.
Regards,
Manoj Khatri
अद्भुत है इस पोस्ट को पढ़ना...हम भी जैसे समय में कुछ साल पीछे चले गए थे. बड़े खूबसूरत बिम्ब हैं जगह के...
ReplyDeleteहम तो यहाँ ठहर के रह गए...
भौतिकी के सारे नियम उल्टे लटक गए। एकदम बसावट के बीचोंबीच, पर किसी से पूछो की बस्ती कितनी दूर है तो शायद बताएगा सवा दो सौ साल दूर!