डिस्क्लेमर- मैं यह स्वीकार करता हूँ कि इस आदमी को नज़दीक से मैं नहीं जानता। हाय-हेलो के अलावा शायद ही कभी मैंने उससे बातचीत की है और मुझसे उम्र में बड़ा होने के कारण मैंने अपनी समझ आने पर उसे हमेशा बड़ा ही देखा है। फ़िर भी, कई सालों से उसे अलग अलग भूमिकाओं में देखने और उसके बारे में जानने वालों के किस्सों से मैं उसके बारे में लिखने, उसका शब्दचित्र बनाने का जोखिम उठा रहा हूँ। मेरी तमाम ईमानदारी के बावजूद इसमे सूक्ष्म डिटेल्स का अभाव रहेगा और अपने सर्वोत्तम रूप में भी, ज़्यादा से ज़्यादा ये उसके दूर से खींचे गए फोटो से अधिक कुछ नहीं होगा। कहीं अगर मेरा प्रयास उसे और स्पष्ट करता लगता है तो कृपया इसे मेरा लेखकीय कांइयापन माना जाय।
वो-
उसका नाम प्रवीण है ज़ाहिर है इस नाम का व्यक्ति आज की पीढी का नहीं होगा....आजकल प्रवीण नाम रखना कहाँ फैशन रह गया है ? हाँ प्रणय नाम होता तो शायद उसे बाद की पीढी का माना जा सकता था।
क़स्बे के क्रिकेट क्लब में वो ओपनिंग बैट्समैन था। उसका काम नई गेंद की शाइन को ख़त्म करना था और तीसरे नम्बर के बल्लेबाज़ के लिए कुशन प्रदान करना था। कई मैच खेलने के बाद भी उसने गिनती के ही चौके लगाए थे। उसे टुकटुकिया मास्टर कहा जाता था। अपने दम पर सिर्फ़ एक बार उसने मैच बचाया था जब वो अंत तक आउट नही हुआ और दूसरे एंड पर बल्लेबाज़ रन बनाते रहे,आउट होते रहे। और जब १०वें नम्बर पर बैटिंग करने आए फास्ट बॉलर ने सिक्सर लगाकर मैच टीम के कब्जे में कर लिया उस वक्त भी शीट एंकर बने प्रवीण के खाते में कम ही तालियाँ आई। वो फास्ट बॉलर ही सारी तारीफ बटोर ले गया। उस बॉलर को लोगों ने गुटखे के पाउचों से लाद दिया जबकि प्रवीण को गुटखा भी जेब से खर्च कर खाना पड़ा। वो इस शानदार प्रयास के बावजूद unsung हीरो ही बना रहा।
एक क्रिकेटर के तौर पर लड़कियों की पसंद वो कभी नहीं रहा क्योंकि अजय जडेजा ६ नम्बर पर बल्लेबाजी करने आता था लिहाजा जो ग्लैमर ६ नम्बर के साथ जुदा था वो ओपनिंग स्लॉट के साथ हरगिज़ नही हो सकता था।
एक क्रिकेटर के तौर पर बेहद संक्षिप्त और नाकामयाब कैरियर के समाप्त हो जाने के बाद उसका एक बेरोजगार के रूप में अन्तराल लंबा चला। इस दौर में उसके बारे में जो किस्सा चल पडा था वो ये था कि वो सामूहिक भोज में बढ़िया बैटिंग करता था, बिल्कुल जडेजा की तरह। जीमने का कपिलदेव!कहते हैं कि वो जीम चुकने के बाद ५ लड्डू खा सकता था।
हर साल आसपास उड़ती बाल विवाह की ख़बरों के बीच वो ज़िन्दगी के ३५ साल पार कर चुका था। एक क्रिकेटर के तौर पर तो वो संन्यास ले ही चुका था, एलिजिबल बैचलर के लिहाज़ से भी उम्र पार कर चुका था।
अपने दोस्तों में अक्सर वो जी एस का ज़िक्र करता था। जी एस यानी गीता शर्मा। गीता शर्मा से रिश्ते को लेकर उसमे हमेशा उम्मीद धड़कती रहती थी। वो कहता कि जी एस से उसकी शादी का रिसेप्शन ज़बरदस्त भव्य होगा। क़स्बे के सबसे बड़े टेंट वाले को कह रखा है कि कभी भी काम पड़ सकता है, तैयार रहना!
एक दिन जी एस की शादी किसी और के साथ हो गई।
प्रवीण ने उस रात कफ सीरप की पूरी बोतल पी ली। सुबह उसकी आंखों में कफ सीरप से बलात् लाई गई खुमारी में उस एकतरफा रिश्ते का अंत भी नुमाया था।
यूँ ज़िन्दगी के मामूलीपन और उसमें भी उसके साथ घटे हादसों ने प्रवीण को घर में भी बाँझ गाय की तरह अवांछित बना दिया। "स्साले ज़िन्दगी के बहीखाते में उसके हिस्से 'बरकत' लिखा कभी आया क्यों नहीं?" ये सवाल उसे परेशान करता रहता। इसी वाहियात समय में उसके दोस्त पहले शादीशुदा फ़िर बाल बच्चेदार होते रहे और वो ऐसा किरदार बना रहा जिसका भगवान् की बनाई कहानी में कोई रोल ही नहीं था।
उसे लगता उसमे छटांक भर भी काबिलियत नहीं है जिसके ज़रिये वो कुछ भी साबित कर सके।
मैं-
सड़क पर पड़े हजारों लावारिस फोटो वक्त के जूतों तले दबते रहे। मेरी नज़र में प्रवीण भी समय के भारी बूटों तले पददलित हो चुका था। मैं उसके बारे में इतना कुछ लिखने वाला भी नहीं था पर एक दिन......
एक दिन जैसे सड़क पर बरसों से फडफडाते ,महत्वहीन फोटोग्राफ्स में से एक उसका फोटो उड़कर मेरे चेहरे से चिपक गया। मुझे किसी ने बड़े लापरवाह अंदाज़ में बताया कि प्रवीण की आजकल बड़ी पूछ है। वो highly sought after हो गया है। लोग दूर दराज़ के गाँवों तक से उसे वाहन भेज कर बुलाते है और बासम्मान वापस घर छोड़ते है।
"क्यों ऐसा क्या कर दिया उसने?"मैंने पूछा।
"अरे वो बिच्छू उतारने का मन्त्र सीख गया है"।
अब बारी मुझे बिच्छू काटने की थी। मैंने चिहुँकते हुए पूछा -"बिच्छू उतारने का मन्त्र?"
" हाँ, प्राथमिक योग्यता तो उसकी बिच्छू उतारने में है। लोग मानते है कि कैसा भी ज़हरीला क्यों न हो, "प्रवीण महाराज" मिनटों में उतार देते है। और द्वितीयक योग्यता ये कि वो छोटे मोटे कर्मकांड भी करवा लेता है।
मैं चकरी की तरह घूमने लग गया। मुझे सुरेन्द्र मोहन पाठक के चरित्र विमल उर्फ़ सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल का ऐसे वक्त में बोलने वाला वाक्य याद आया-
"धन्न करतार"
( फोटो जोधपुर के युवा चित्रकार मनीष सोलंकी की एक पेंटिंग का है, साभार)
वो-
उसका नाम प्रवीण है ज़ाहिर है इस नाम का व्यक्ति आज की पीढी का नहीं होगा....आजकल प्रवीण नाम रखना कहाँ फैशन रह गया है ? हाँ प्रणय नाम होता तो शायद उसे बाद की पीढी का माना जा सकता था।
क़स्बे के क्रिकेट क्लब में वो ओपनिंग बैट्समैन था। उसका काम नई गेंद की शाइन को ख़त्म करना था और तीसरे नम्बर के बल्लेबाज़ के लिए कुशन प्रदान करना था। कई मैच खेलने के बाद भी उसने गिनती के ही चौके लगाए थे। उसे टुकटुकिया मास्टर कहा जाता था। अपने दम पर सिर्फ़ एक बार उसने मैच बचाया था जब वो अंत तक आउट नही हुआ और दूसरे एंड पर बल्लेबाज़ रन बनाते रहे,आउट होते रहे। और जब १०वें नम्बर पर बैटिंग करने आए फास्ट बॉलर ने सिक्सर लगाकर मैच टीम के कब्जे में कर लिया उस वक्त भी शीट एंकर बने प्रवीण के खाते में कम ही तालियाँ आई। वो फास्ट बॉलर ही सारी तारीफ बटोर ले गया। उस बॉलर को लोगों ने गुटखे के पाउचों से लाद दिया जबकि प्रवीण को गुटखा भी जेब से खर्च कर खाना पड़ा। वो इस शानदार प्रयास के बावजूद unsung हीरो ही बना रहा।
एक क्रिकेटर के तौर पर लड़कियों की पसंद वो कभी नहीं रहा क्योंकि अजय जडेजा ६ नम्बर पर बल्लेबाजी करने आता था लिहाजा जो ग्लैमर ६ नम्बर के साथ जुदा था वो ओपनिंग स्लॉट के साथ हरगिज़ नही हो सकता था।
एक क्रिकेटर के तौर पर बेहद संक्षिप्त और नाकामयाब कैरियर के समाप्त हो जाने के बाद उसका एक बेरोजगार के रूप में अन्तराल लंबा चला। इस दौर में उसके बारे में जो किस्सा चल पडा था वो ये था कि वो सामूहिक भोज में बढ़िया बैटिंग करता था, बिल्कुल जडेजा की तरह। जीमने का कपिलदेव!कहते हैं कि वो जीम चुकने के बाद ५ लड्डू खा सकता था।
हर साल आसपास उड़ती बाल विवाह की ख़बरों के बीच वो ज़िन्दगी के ३५ साल पार कर चुका था। एक क्रिकेटर के तौर पर तो वो संन्यास ले ही चुका था, एलिजिबल बैचलर के लिहाज़ से भी उम्र पार कर चुका था।
अपने दोस्तों में अक्सर वो जी एस का ज़िक्र करता था। जी एस यानी गीता शर्मा। गीता शर्मा से रिश्ते को लेकर उसमे हमेशा उम्मीद धड़कती रहती थी। वो कहता कि जी एस से उसकी शादी का रिसेप्शन ज़बरदस्त भव्य होगा। क़स्बे के सबसे बड़े टेंट वाले को कह रखा है कि कभी भी काम पड़ सकता है, तैयार रहना!
एक दिन जी एस की शादी किसी और के साथ हो गई।
प्रवीण ने उस रात कफ सीरप की पूरी बोतल पी ली। सुबह उसकी आंखों में कफ सीरप से बलात् लाई गई खुमारी में उस एकतरफा रिश्ते का अंत भी नुमाया था।
यूँ ज़िन्दगी के मामूलीपन और उसमें भी उसके साथ घटे हादसों ने प्रवीण को घर में भी बाँझ गाय की तरह अवांछित बना दिया। "स्साले ज़िन्दगी के बहीखाते में उसके हिस्से 'बरकत' लिखा कभी आया क्यों नहीं?" ये सवाल उसे परेशान करता रहता। इसी वाहियात समय में उसके दोस्त पहले शादीशुदा फ़िर बाल बच्चेदार होते रहे और वो ऐसा किरदार बना रहा जिसका भगवान् की बनाई कहानी में कोई रोल ही नहीं था।
उसे लगता उसमे छटांक भर भी काबिलियत नहीं है जिसके ज़रिये वो कुछ भी साबित कर सके।
मैं-
सड़क पर पड़े हजारों लावारिस फोटो वक्त के जूतों तले दबते रहे। मेरी नज़र में प्रवीण भी समय के भारी बूटों तले पददलित हो चुका था। मैं उसके बारे में इतना कुछ लिखने वाला भी नहीं था पर एक दिन......
एक दिन जैसे सड़क पर बरसों से फडफडाते ,महत्वहीन फोटोग्राफ्स में से एक उसका फोटो उड़कर मेरे चेहरे से चिपक गया। मुझे किसी ने बड़े लापरवाह अंदाज़ में बताया कि प्रवीण की आजकल बड़ी पूछ है। वो highly sought after हो गया है। लोग दूर दराज़ के गाँवों तक से उसे वाहन भेज कर बुलाते है और बासम्मान वापस घर छोड़ते है।
"क्यों ऐसा क्या कर दिया उसने?"मैंने पूछा।
"अरे वो बिच्छू उतारने का मन्त्र सीख गया है"।
अब बारी मुझे बिच्छू काटने की थी। मैंने चिहुँकते हुए पूछा -"बिच्छू उतारने का मन्त्र?"
" हाँ, प्राथमिक योग्यता तो उसकी बिच्छू उतारने में है। लोग मानते है कि कैसा भी ज़हरीला क्यों न हो, "प्रवीण महाराज" मिनटों में उतार देते है। और द्वितीयक योग्यता ये कि वो छोटे मोटे कर्मकांड भी करवा लेता है।
मैं चकरी की तरह घूमने लग गया। मुझे सुरेन्द्र मोहन पाठक के चरित्र विमल उर्फ़ सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल का ऐसे वक्त में बोलने वाला वाक्य याद आया-
"धन्न करतार"
( फोटो जोधपुर के युवा चित्रकार मनीष सोलंकी की एक पेंटिंग का है, साभार)