जो अंक गणितीय पूर्णता के साथ
यहाँ आया था
सबसे हरे पत्ते में भी ढूँढा जा सकता था
एक सूक्ष्मदर्शीय पीला चकत्ता
उसैन बोल्ट के फेंफडों में भी पाया जा सकता था
कोई विकार
आइंस्टीन के जीवन का भी कोई वाकया
साबित कर सकता था उसे उस क्षण में
मंद बुद्धि.
पर उसका मामला यूं कुछ अलग भी था
सुबह आँखें खोलते ही दुनिया जिस आक्रामकता के साथ
घुसी चली जाती थी
उसके दृष्टि पटल पर एक विस्फोट के साथ
आवाजों का एक कर्कश हुजूम
त्वरा के साथ गिरता कान के परदे पर
छील जाती थी उसकी त्वचा का आवरण
वो अनिमंत्रित पर अवश्यम्भावी मुलाकात
खिडकी से आती धूप में
नज़र आते थे तैरते
उसकी मृत कोशाओं के छिलके
ये उस रोज़ की दुनिया से
उसका पहला घर्षण होता था.
वो शायद इस योग्य दुनिया
का तगड़ा विकल्प नहीं था.
बेहतरीन से बेहतरीन दर्जी की जींस भी
उसकी देह का आकार नहीं ले पाती थी
उसे उसके स्वाद की चाय और
उसकी पसंद की कलम आज तक
नहीं मिली थी
जैसे उसकी स्वाद-कलिकाओं को
विलक्षण जायकों में से भी सबसे सुलभ का
हकदार भी न माना गया हो.
और न ही इस लायक भी कि वो
लिख सके अपनी जिंदगी के साथ
कोई सम्मानजनक इकरारनामा.
उसकी सोच की हद यहीं तक थी कि
एक गलत नंबर का चश्मा भी
दुनियां को उसके त्रिआयामी यथा रूप से
धकेल नहीं सकता था
मज़बूत से मज़बूत अवरोध भी
रोक नहीं सकता था
कानों में
उस काल भैरवी हुंकार की धमक
और न कोई मलहम दे सकता था
रोशनी के धुंए में उड़ती
निर्जीव कोशिकाओं को चिरंजीविता.