बड़ी बहन का स्वप्न
उसके सपने में है एक बड़ा घर. सफ़ेद दीवारों से बना. आँख की पुतलियों के व्यस्ततम समय में रचा गया ये घर अक्सर उसके सपनों में आता है.और नींद से लेकर जागने तक की दुनियाओं में उसका पीछा करता रहता है. नींद और जाग की दो दुनियाओं के बीच भी बहुत कुछ होता है. आँख का खुलना और बंद होना सिर्फ सोये और जागे में देखना नहीं है.पलकों की हर एक झपक जैसे इन दो स्थितियों के बीच के कई वैकल्पिक विश्व क्रमवार सामने रखती जाती है. पर सफ़ेद दीवारों वाला घर हर बनते बिगड़ते भूगोल में रहा है, बिलकुल एक जैसा.कम ही ऐसा होता है कि जागने के कम उपलब्ध चिल्लर समय में उसे वो घर न दिखाई दे.पर हां इसके आसपास का भूदृश्य कई बार वो खुद चुनती है.चुनकर हटाती है,कुछ नया रखती है, फिर हटाती है. केन्द्रीय भाव को यथा स्थित रखे रखे.
उसके सपने में लॉन की आराम कुर्सी पर दादी बैठी है. बरसों पुराना अखबार उसके हाथ में है.वो हमेशा वही पुराना अखबार पकडे रहती है.इसका कारण कुछ भी हो सकता है. जैसे कुछ भी पढ़ना.अखबार की ओट में छुप सकने की सहूलियत भी एक अन्य कारण हो सकता है.कोई सोचेगा कि अखबार पढ़ रही है या ज्यादा से ज्यादा कि चेहरे पर पड़ती धूप से बचाव हो रहा है.
दादी की आँखों पर एक विशाल फ्रेम वाला नज़र का चश्मा है पर उसका चेहरा इतना निश्चेष्ट है कि सोचना ज़रा मुश्किल है कि वो सो रही है या अखबार पढ़ रही है.
एक अदेखा पक्षी पास में खड़े पेड़ पर बैठा है. वो अकेला विदूषक की तरह हरकतें कर रहा है जिससे पता चलता है कि ये सब एक थिर चित्र मात्र नहीं हैं.
छोटी बहन का स्वप्न
छोटी बहन के सपनों में रंगों को लेकर अजीब सा उत्साह था. उसके सपनों में चटख रंग बिखरे रहते.मटमैले, धूसर रंगों से उसे ख़ास चिढ थी. चिढ तो उसे खैर रोज़ होने वाले रोज़मर्रापन से भी थी.इसीलिए शायद उसके सपनों में चाँद गायब था और उसकी जगह कोई चमकीला नीला आकाशीय पिंड आकाश के वितान में लटका रहता था. सितारे अपनी मद्धिम टिमटिम से राख न गिराकर स्वर्णिम आभा से दिप दिप किया करते.
घर की दीवारों से वो आराम से गुज़र सकती थी. उसमें से होकर. मां, दादी भी ऐसा कर सकते थे.गुरुत्वाकर्षण के नियम में भी उसके लिए कुछ छूट थी.
एक दिन बड़ी बहन भी उसके पीछे दीवार में से होकर गुजरने लगी तो उसका सर टकराकर रह गया.उसके लिए दीवार एक दम पत्थर की हो गयी. वो बड़ी बहन को देखकर हंसने लगी और कहा तुम हमेशा थोड़े ही ऐसा कर सकती हो. मैं जब अपना मैजिक वॉन्ड घुमाती हूँ तभी ऐसा होता है. ‘ये लो’ कह कर उसने अपना मैजिक वॉन्ड बड़ी बहन पर घुमाया और कहा अब तुम दीवार में से होकर जा सकती हो.
कुछ इस तरह से आते थे उनके सपने.वे दोनों सपने भले ही अलग अलग देखती थीं पर उनमें भी वे बहनें ही हुआ करतीं थीं.
(चित्र साभार- विकिमीडिया)
सुन्दर! स्वप्न जाग्रितावस्था से अधिक रोचक, शक्तिशाली और कल्पनाशील है.
ReplyDeleteदिलचस्प !! ...सबके पास अपने हिस्से का सुख है ..अपने हिस्से के सपने .जिंदगी को देखने के लिए किसी खास एंगल पर रखा कैमरा !
ReplyDeleteजाने क्यों नमकीन याद आ गयी गुलज़ार की ..तीन बहनों की कहानी ..
"वे दोनों सपने भले ही अलग अलग देखती थीं पर उनमें भी वे बहनें ही हुआ करतीं थीं."
ReplyDeleteसपनों की स्याही का विलयन प्रेम और उसके अपशिष्टों से ही बना होता है. इसीलिए यही वो जरुरी तत्व है जो सपनों को सम्पूर्ण अलौकिक होने से बचा पाता है.