Wednesday, February 27, 2019

हरी परछाईं


लड़की पुल के नीचे रहती थी। लड़का हमेशा पुल के ऊपर से गुज़र जाता। और वे अरसे तक मिले ही नहीं। पुल एक दुबली नदी पर बना था और वो नदी हमेशा सूखी रहती थी। बारिश के दिनों को छोड़कर। बारिश के दिनों नदी में पानी बहता था। जैसे ही बारिश ख़त्म होती , नदी भी ख़त्म हो जाती। नदी एक हरी सी परछाईं छोड़कर चली जाती।
ये नदी शहर के बीचोंबीच से होकर गुज़रती थी। और ये सिलसिला कई हज़ार बरसों से चला आ रहा था। नदी तब भी इसी जगह थी जब ये शहर नहीं था। नदी तब भी इसी जगह थी जब इस जगह कोई दूसरा और भी ज़्यादा पुराना शहर था, संभवतः जो किसी प्रलय में नष्ट हो गया था। नदी का पता तब भी यही था जब यहां कोई ताम्रकालीन नगरी थी। और तो और ये उससे भी पुरानी प्रस्तर युगीन बस्तियों के वक्त भी यहीं बहती थी। बहुत पुराने क़िस्सों में ही अब ये बात बची है कि नदी असल में एक राजकुमारी थी और अपने पिता की लाड़ली थी। उसके पिता धरती से कई प्रकाशवर्ष दूर ब्रह्माण्ड में बसी एक और धरती के राजा थे और इसी लाड़ली बेटी की ज़िद पर स्वर्ग की प्रतिकृति बनाने का आदेश अपने कारीगरों को दिया था। उन्होंने अपने राज्य के समस्त राजमिस्त्रियों को सिर्फ़ इसी काम में लगा दिया था। राजकुमारी इसी काम में लगे एक युवा कारीगर के प्रेम में पड़ गयी। राजा अपनी बेटी से बहुत नाराज़ हुआ और उसने अपने बेटी को अपने राज्य से हमेशा के लिए निष्काषित कर हमारी धरती पर नदी बना कर भेज दिया, जो उस वक़्त तक मिट्टी का एक  निर्जन पिंड मात्र थी। बरसों बाद राजा अपने बेटे को सत्ता सौंप कर हमेशा के लिए अपनी बेटी के पास आ गया,नीला पहाड़ बनकर।  
इस तरह के मिथक नदी को प्राचीन सिद्ध करते हैं। न भी करें तो भी हर नदी प्राचीन होती है। उसे किसी साक्ष्य या साक्षी की आवश्यकता नहीं। इस तरह आज इस शहर के बीच से ये नदी नहीं बहती थी बल्कि शहर उसके दोनों तरफ बस गया था। कोई एक रहा होगा जो नदी के कलकल को सुनने बैठ गया था और उसने यहां बस्तियां बसा ली।  यही सिलसिला बाबा आदम के ज़माने से हर जगह चला आ रहा है। इस नदी और इस शहर की बात भी इससे अलग नहीं। फ़र्क़ ये आया है, जैसा कि इस शहर के जानकार लोग बताते हैं, कि नदी बहुत मंथर हो गयी है। नदी का वेग अब नहीं रहा। और ये कि पिछले कुछ सालों में तो बारिश में भी बहुत कम समय के लिए यहां आती है।  इतने कम दिनों के लिए जितने दिन कोई उम्रदराज़ महिला पीहर जाया करती है। और देह तो उस नदी की बहुत कमज़ोर हो गयी है। लोग कहते हैं कि नदी तो सिर्फ़ अब 'इत्ती सी भर' रह गई है।  जब इस पर पुल बना था था उन दिनों तो बारिश में एक बड़े हिस्से को जलमग्न कर देती थी। अब पुल बने भी बरसों हो गए है , नदी की याद कम ही आती है। पास बसी बस्तियों को भी नहीं। हाँ बारिश के दिनों में ये पुल के नीचे अपने हिस्से की ज़मीन पर एक रेले की तरह बहती रहती है। 


एक तेज़ बारिश में लड़के ने पुल के किनारे पर लोगों को नीचे झांकते देखा। उसने अपनी बाइक पुल पर ही साइड में खड़ी की और झांककर देखा। नीचे वेग के साथ पानी बाह रहा था। उसने लोगों से कहते सुना , दस बरस बाद फिर से नदी को इस तरह झूमते देखा है। पुल के नीचे रहने वाले लोग अपने पास बहती नदी को चमत्कृत से देख रहे थे। उन्होंने इस जगह कभी इतना जल नहीं देखा था। 

उसी पुल के नीचे लड़के ने उस लड़की को देखा था। अपने घर के बाहर ,अपने से कुछ दूरी पर भागती नदी को देखते हुए। और वो लड़की नदी को गहरे अपनापे से देख रही थी। नदी कुछ वेग से एक पुराने शिलाखंड पर चोट खाकर लंगड़ाती भाग रही थी। और जहां चोट खा रही थी वही छोटे छोटे असंख्य जल बिंदु दिशाहीन से दूर तक उड़ रहे थे। लड़की उन महीन 'जल किरचों' को अपने शरीर पर चुभते अनुभव कर रही थी। 
वो हर बार अपने चेहरे से उछले हुए पानी को हटा रही थी और पानी था कि उसे हर ओर से भिगोये जा रहा था। उसके वस्त्र भीग गए थे ,उसके हाथ भीग गए थे , उसके बाल भीग गए थे, उसका चेहरा भी भीग चुका था। लड़का पुल के ऊपर से उसकी जल-लीला को देख रहा था। पानी की अनगिनत बूंदों ने लड़की पर एक बेहद हल्का आवरण बना दिया था। उसे इस तरह  धुंधली दिखती लड़की बहुत अच्छी लग रही थी। उसका मन हुआ कि वो पुल के नीचे जाकर क़रीब से लड़की को पानी साथ खेलता देखे। और वो नीचे चला गया और सीधा वहीं पहुंचा जहां लड़की अपने घर के बाहर खड़ी थी। लड़की काफ़ी देर तक उसकी उपस्थिति से अनजान अपने में ही पहले की तरह व्यस्त रही। अचानक ऊपर से कुछ शोर जैसा हुआ। लड़की की तन्द्रा टूटी। उसने अपने पास एक अनजान लड़के को देखा तो वो झट से अपने घर के भीतर चली गयी। लड़के को ग्लानि सी हुई। उसीने लड़की के उस अबोध और निर्दोष खेल को बंद करवा दिया था। वो काफी देर अन्यमनस्क सा वहीं खड़ा रहा। नदी चोट खाती रही। पानी की नन्ही बूँदें उछलती रही उसका चेहरा भिगोती रही। अचानक उसका ध्यान घर की खिड़की पर गया।  लड़की खिड़की से पानी का खेल देख रही थी। पुल पर खड़े लोगों के लिए नदी कौतुक का विषय थी। लड़के के लिए नदी प्रेम लेकर आई थी। 

शहर के कुछ बुज़ुर्ग राज़दार लोगों का मानना था कि नदी बरसों बरस अपने पिता से मिलने इस शहर से गुज़रती थी। शहर की सबसे ऊंची जगह से देखने पर वो नीला पहाड़ दीखता था जिसे राज़दार लोग नदी का पिता मानते थे। उनका अब भरोसा हो गया था कि स्टोन माफिया के ब्लास्ट में वो पिता भी किसी दिन बिखर जाएंगे, फिर वो नदी कभी लौटकर नहीं आएगी। 
ख़ैर , लड़का बारिश के बाद भी, जब उस नदी की सिर्फ हरी परछाईं ही बची रह जाती थी,  कई बार पुल के नीचे से झांकता था और उसे वो लड़की दिखाई देती थी। नदी के चले जाने के बाद लड़के को लड़की की शक़्ल बहुत साफ़ साफ़ दिखती थी। एक बार उसने बेध्यानी में लड़की की तरफ देखकर हाथ हिला दिया। जवाब में लड़की ने भी उसकी ओर देखते हुए हाथ हिला दिया। लड़की शायद मानने लगी थी कि पिछली बारिश में नदी ने जो वसीयत लिखी थी उसमें उसके साथ उसका भी नाम था। 

फ़िर वे दोनों कई बार मिले। उनकी बार बार मिलने की इच्छा होने लगी। लड़के को लड़की का धुंधला चेहरा याद आने लगता और वो उससे कहता, मुझसे दिन के उजाले में मत मिलो जब सब कुछ साफ़ साफ़ दीखता है। मुझे किसी कोहरे से भरे दिन में मिलो। अब चूँकि उस शहर में कोहरा नहीं होता था तो वे दिन के उस प्रहर में मिलते जब सब कुछ साफ़ साफ़ नहीं दीखता। एक दिन लड़के ने लड़की से फ़रमाइश की कि वो अँधेरी रात में जुगनुओं की प्रदीप्ति में उसका चेहरा देखना चाहता है। अँधेरे के समुद्र में रौशनी के बल्ब लिए घूमते जुगनुओं का फ़ीका  प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ेगा तो वो एक पेंटिंग में बदल जाएगी । 

वे दोनों उम्र में धीरे धीरे बड़े होते गए पर उनकी स्मृति में नदी का छोटे छोटे जल बिंदुओं में टूटना हमेशा बना रहा। ये उनके प्रेम का स्थायी दृश्य था। 

एक दिन लड़की ने लड़के का हाथ पकड़ लिया। लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ा। उन्होंने परिणय के बंधन में आने का निश्चय किया। बस यहीं से उनकी बाधाएं शुरू हो गयीं। दोनों के घरवाले उनके प्रेम को नष्ट करना चाहते थे।  लड़की एक अँधेरी रात दबे पाँव लड़के के घर तक पहुंची, और उसने लड़के के कमरे की खिड़की को सांकेतिक अंदाज़ में दस्तक दी। लड़का उसका संकेत समझ गया। वो तुरंत बाहर आया और उसे घर के पिछवाड़े ले गया। लड़की के चेहरे पर सितारों का प्रकाश गिर रहा था। रात लेकिन इतनी अँधेरी और रौशनी इतनी क्षीण थी कि वो सिर्फ एक कांपती आकृति में ही दिख रही थी। लड़का उसके चेहरे पर दृढ़ता के साथ कातरता भी साफ़ देख पा रहा था। कातरता साथ चलने के निवेदन की। तभी लड़के के घर की सांकल बजी। लड़की भय के मारे वहां से भाग गयी। वो चाहती थी कि लड़का भी उसके पीछे भागकर आये। पर ऐसा न हो सका। लड़का वहीं जड़ खड़ा रहा। उसके पाँव ठण्ड में जैसे वहीं जम गए थे। 

 लड़की की उसके बाद कोई ख़बर नहीं मिली। लड़के ने कई बार पुल के नीचे झाँका पर उसे सिवा सन्नाटे के कुछ भी नज़र नहीं आया। नदी की हरी परछाईं भी ग़ायब हो चुकी थी। अब उस जगह मिट्टी में भीषण दरारें थी और शुष्क, तप्त बालू थी जो हवा में उड़ उड़ कर लोगों को काट खाती थी। नदी अब ग़ायब हो चुकी थी। पुल के नीचे बारिश में सिर्फ कीचड़ नज़र आता था। राज़दार लोगों ने चुप्पी साध ली थी। इस नदी की गोद में कितने शहर बने और मिट गए पर नदी हमेशा बनी रही थी। इस बार जाने क्या हुआ कि एक शहर ने नदी को ही लील लिया था। कुछ अरसे पहले एक भयानक विस्फोट ने नीले पहाड़ को भी चूर्ण में बिखेर दिया था। 

लड़के ने लेकिन, बरसों तक पुल के नीचे झांकना बंद नहीं किया। हालांकि वहां न तो अब नदी थी, न लड़की, न शिलाखंड, और न ही वो मकान जिसकी खिड़की से लड़की ने उसे पहली बार देखा था। कोई नियम-धर्म की तरह लड़का पुल से झांकता था। वो अब अधेड़ हो चला था। घर गृहस्थी में आये बरसों हो चुके थे उसे।  उसका अपना एक बेटा था जो जवान हो रहा था। एक दिन उसके बेटे ने उससे कहा कि उसे एक लड़की से प्रेम है। लड़के ने, जो अब अधेड़ था उससे कहा कि अब वो क्या करने के बारे में सोच रहा है। अधेड़ के बेटे ने कहा अगर वो लड़की किसी अँधेरी रात मेरे घर के पिछवाड़े आएगी तो मैं सांकल बजने पर भी उस लड़की के साथ भाग जाऊँगा। बरसों पहले उस नीच,कापुरुष की तरह वहीं खड़ा नहीं रहूँगा जो घर की सांकल बजने पर वहीं खड़ा रह गया था। 
अधेड़ सिहर गया। उसने अपने बेटे से पूछा - 'तुम्हे ये बात किसने बताई '?
'शहर के राज़दार लोगों ने' बेटे ने जवाब दिया। 
लड़के ने जो अब अधेड़ था , राहत की सांस ली। राज़दार लोग हमेशा संकेतों में बात करते थे। वे सबसे शापित लोगों में से थे। शहर के सारे राज़ जानते थे। उनके भीतर ठोस, अंधेरे राज़ थे। वे शहर के अच्छे दिनों को याद ही नहीं कर पाते थे। शहर के दुःख उनके पीछे प्रेत की तरह पड़े रहते थे।       

अधेड़ के बेटे ने उससे ज़रूर अपने प्रेम की बात बताई थी और कहा था कि वो सांकल बजने पर भी रात के अँधेरे में दबे पाँव उसके घर आई लड़की के साथ भाग जाएगा पर ..  वो मौका नहीं आया। वो लड़की किसी भी अँधेरी रात में उसके घर तक नहीं आई। किसी ने उसकी खिड़की पर सांकेतिक दस्तक़ न दी। बल्कि उसने कहा हम अपने अपने घर वालों को मनाते हैं। प्रेमी लड़का भी तुरंत इस प्रस्ताव पर राज़ी हो गया। ये सुविधाजनक तरीका था और इसमें नौबत आने पर प्रेम की अंत्येष्टि करने में कोई ग्लानि भी पीछा नहीं करती। प्रेमी बेटे ने अब अधेड़ हो चुके अपने पिता से डरते डरते पूछा तो पिता समझ गया कि ये भी आख़िर बेटा तो उसी का है, जो  बरसों पहले वही लड़का हुआ करता था जो अपने घर की देहरी लांघ नहीं पाया था, जो घर की सांकल से डर गया था कि कहीं पिताजी ग़ुस्सा न हो जाये।

 बेटे ने जब अधेड़ को अपने प्रेम को परिणय बंधन में बाँधने के बारे में बताया तो वो तुरंत राज़ी नहीं हुआ। वो देखना चाहता था कि उसका बेटा उससे अलग है या नहीं। क्या उसका संकल्प मज़बूत है या नहीं। उसने मना कर दिया। लड़का तुरंत याचना वाली मुद्रा में आ गया। वो चिरौरियाँ करने लगा। अधेड़ समझ गया,  इस प्रेम का रेशा अलग है। पर तीव्रता इसकी वैसी ही थी जैसी वो स्वयं जानता था। उसने फिर भी मना ही किया और कहा कि पहले सबकी सहमति ले आओ फ़िर सोचते हैं। सबकी सहमति में बहुत वक़्त लगा। लड़की के घरवाले बहुत मुश्क़िल से माने। लड़का तपस्वियों की तरह लगा रहा। उनके क्रोध को सहता रहा। लड़की के पिता और भाई कई मौकों पर हिंसक भी हुए पर वो धैर्य के साथ उन्हें मनाता रहा। आखिर उसकी ज़िद और ढीठता रंग लाई और वे इस शर्त  पर माने कि लड़के को अपने पिता को भी राज़ी करना होगा। लड़के ने अब अपने अधेड़ पिता से कहा कि अब सिर्फ़ उनका आशीर्वाद बाकी है। अधेड़ ने अपनी हामी भरी।  सबको मनाने में सात साल लगे। लड़का और लड़की अपने प्रेम पर विश्वास करते रहे। अधेड़ ने सात बरस बाद जब उसका बेटा दूल्हा बनने जा रहा था , आख़िर मान लिया कि अपने तात्विक रूप में भिन्न होने के बावजूद ये खरा प्रेम है। उसका बेटा प्रेम का निर्भीक योद्धा न सही एक सच्चा और धैर्यवान भक्त था। उसे अपने बेटे पर गर्व होने लगा।  
अपने बेटे को दूल्हे के रूप में देखकर अधेड़ पिता अपने को भीतर से बेहद भरा भरा सा महसूस करने लगा। बेटे के दोस्त ख़ूब नाच गाना कर रहे थे। उसने अपने बेटे की ओर देखा जो अपने दोस्तों के साथ डांस करने लग गया था। तमाम पारम्परिक वस्त्रों के साथ दूल्हे को एक गाम्भीर्य भी ओढ़ना होता है। इस वक़्त उसका बेटा अपने दोस्तों के साथ थिरक कर इस औपचारिक भारीपन को उतार कर अलग कर रहा था। पिता को इस क्षण वो बच्चा नज़र आने लगा जो अपनी बाल सुलभ मुद्राओं को फिर उसके सामने अनायास ही रख रहा था। पिता को अपने बेटे पर दुलार आने लगा। पर बरसों पुरानी एक गहरी टीस उसके भीतर कही अब भी गड़ी थी। शादी के बाद उसने अपने नवविवाहित बेटे और बहू को पुल के नीचे पूजा के लिए चलने को कहा। बेटे ने जब पूछा कि  पुल के नीचे क्या कोई मंदिर या थान बगैरह है तो वो बोला - 'एक पुरानी नदी वहां बहती थी, नदी क्या साक्षात् गंगा माई ही समझो। उसी की बिछड़ी धार थी। उसका आशीर्वाद लेना ही होगा हमें बेटा।' कहते कहते अधेड़ समय में कई बरस पीछे चला गया, इतना पीछे...... जब वो पुल के किनारे खड़ा होकर नीचे झांकता था और किसी बारिश वाले दिन नीचे बहती गंगाजी के पास उसे वो लड़की दिखाई दी थी।     

3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर कहानी

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete