Friday, May 24, 2019

जब परिचित लोगों में ज़्यादा संख्या मरे हुओं की हो जाती है



इतालो कल्विनो की मशहूर किताब 'इनविजिबल सिटीज़' बहुत समय से मेरे पास है।  किताब को मैंने अपने मुताबिक इस तरह बनाया है कि इसे जब इच्छा होती है कहीं से भी पढ़ सकता हूँ। इसमें मार्को पोलों बहुत सारे शहरों के बारे में बताता है। हालांकि वो तमाम शहरों के हवाले से सिर्फ़ अपने शहर वेनिस की बात ही कर रहा होता है, पर मैं तमाम कल्पित शहरों के टुकड़े टुकड़े वृत्तांतों को भी फंतासी की तरह पढ़ना पसंद करता हूँ। 


किताब से एक अंश - 
(सिटिज़ एंड द डैड - 2 )

मेरी यात्राओं में मैं एडेलमा जितना दूर कभी नहीं गया।
ये गोधूलि का वक़्त था जब मैंने वहां क़दम रखा। डॉक पर जिस जहाजी ने रस्सी खूँटे से बांधी थी वो उस आदमी से मिलता जुलता था जिसने मेरे साथ फौज़ में नौकरी की थी और अब मर चुका था। ये वक़्त थोक मच्छी बाज़ार का था। एक बूढ़ा आदमी सी-अर्चिन से भरी टोकरी गाड़ी में लाद रहा था। मुझे लगा मैं उसे जानता था। मैं  जब तक मुड़कर उसे देखता वो गली के छोर से ग़ायब  चुका था। लेकिन मैंने महसूस किया कि वो मेरे बचपन में देखे उस बूढ़े मछुआरे से काफ़ी मिलता था जो अब, ज़ाहिर है, ज़िंदा नहीं हो सकता।

बुख़ार में तपते उस आदमी को देखकर मैं असहज हो गया जो ज़मीन पर खुद को सिकोड़ कर पड़ा था।  उसके माथे पर कम्बल थी। ठीक इस आदमी की तरह ही मेरे पिता की भी मौत से कुछ दिन पहले आँखें इसी तरह ज़र्द हो गयी थीं,  दाढ़ी बढ़ गयी थी।

मैंने अपनी नज़रें हटा लीं। इसके बाद किसी आदमी के चेहरे में झाँकने की हिम्मत मैंने नहीं की।

मैंने सोचा - " एडेलमा वो शहर है जो  मैं सपने में देख रहा हूँ और जिसमें आपकी मुलाक़ात मृत लोगों से  होती है, तो ये सपना डरावना है। और अगर एडेलमा सचमुच का शहर है, ज़िंदा लोगों का, तो  सिर्फ़ उनकी ओर देखते रहना है और मिलती जुलती परिचित शक़्लें अपने आप मिट जाएंगी, पीड़ा लिए अजनबी चेहरे उभर आएँगे। जो भी हो मेरे लिए सबसे ठीक यही है कि मैं उनकी तरफ़ न देखूं। "

सब्ज़ी- ठेले वाली गोभी तौल कर उसे उस टोकरी में रख रही थी जिसे एक लड़की ने अपने बालकनी से डोर  ज़रिये नीचे लटका रखा था। वो लड़की मेरे गाँव की उस लड़की से हूबहू मिलती थी जिसने प्रेम में पागल होकर अपनी जान दी थी।
सब्ज़ी बेचने वाली ने अपना चेहरा उठाया -  वो मेरी दादी थी।
 मैंने सोचा - "हरेक अपनी ज़िन्दगी में उम्र के उस पड़ाव पर ज़रूर पहुंचता है जब उसके अब तक के परिचित लोगों में ज़्यादा संख्या उनकी होती है जो मर चुके होते हैं, और दिमाग़ इससे ज़्यादा चेहरे और भाव याद रखने से मना कर देता है, हर नए सामने आने वाले चेहरे पर ये पुरानी शक़्लें ही छाप देता है, हरेक के लिए ये उपयुक्त मुखौटा ढूंढ ही लेता है। "