Saturday, July 31, 2010
लिस्ट
सबसे क्षीण यहाँ आँधियों की स्मृतियाँ हैं.कितनी अब तक आयीं और गई,सबसे तेज कौनसी थी कुछ याद नहीं. और सबसे प्रगाढ़ बारिश की.बीस साल पहले हुई बारिश में कस्बे का तालाब पूरा भरा था.उसके बाद इतनी जोर की बारिश याद नहीं. हाँ पर अभी कुछ दिन पहले रात बादलों के दबाव और दाह से छूटी तो इतनी भीगी कि अगली सुबह एकदम ताज़ा फूल की तरह निकली.और उसी सुबह मुझे झिंझोडती हुई एक आवाज़ ने जगाया.ये कोई चिड़िया थी जो पिछले साल भी इन्हीं दिनों में सुनाई दी थी.मैं पूछना चाहता था अपनी माँ से, कि ये कहीं वो तो नहीं थी जिसे माऊ(दादी) ने एक कहानी में बताया था कि एक चिड़िया अपने जीवन में सिर्फ एक बार, वो भी बारिश में ही पानी पीती है.दादी ने बात बात में ही बताया था कि ऐसी ‘चिकी’ का अस्तित्व है और खुद उसने, सिर्फ एक बार, अपने बचपन में उसे देखा था.मैं खुद आज भी आश्वस्त नहीं हूँ कि ये दादी का पानी को लेकर उपजा हैलुसिनेशन था या एक सच.रेगिस्तान में इस तरह की कई बातें पानी के इर्द गिर्द कही जाती रही हैं.आज तक इनमें से कई के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता. अब दादी नहीं है.पिछले दस साल से.माँ गाँव जा चुकी है और पत्नी मेरे जितनी ही समझदार है. तो यूँ मेरे काम की लिस्ट में एक काम और बढ़ गया है.
कुछ देर बाद पास की पटरियों से शहर की सुबह के कोलाहल में कुछ अलग जोड़ती जैसलमेर की ट्रेन आ चुकी थी.जिसकी द्रुत लय में अपने रुदन की विलंबित से बेमेल संगति बिठाते कुत्ते मुझे हमेशा इस ट्रेन की याद दिलाते है, वैसे ही जैसे ये ट्रेन महल्ले के कुत्तों की. जैसलमेर में मित्र को एक ज़रूरी बात के लिए कॉल करना था और ये कई दिनों से सुबह इस ट्रेन के बहाने ही याद आता है.पर फिलहाल ध्यान सिर्फ इस रोचक तथ्य पर ही गया कि पडौस के कुत्तों का इस ट्रेन की आवाज़ की प्रतिक्रिया में उपजा विलाप ‘जिनेटिक’ है.क्योंकि इन दस सालों में कुत्तों की तीसरी पीढ़ी भी यही कर रही थी. शायद अपने किसी पूर्वज की आह से उपजा था ये गान.
दोपहर बाद शहर के एक कोने के आकाश में हवाई जहाज की इतनी नज़दीक गडगडाहट से याद आया कि एअरपोर्ट के पास ही रहता है वो दोस्त जो सालों से अपने घर आने को लेकर मेरी जान खा रहा है. मैंने बाइक रोक भी दी पर घुमा नहीं पाया क्योंकि मेरे रोज के काम अभी बहुत बाकी थे और दिन आधा निकल चुका था.मैंने कुछ यूँ मन को समझाया कि कितनी बार वो आया था मेरे घर? भले ही इन दिनों मेरी उसे बहुत बुलाने की इच्छा भी नहीं थी. शायद ऐसा ही उसके साथ भी हो रहा हो? बाइक आगे बढाते वक्त भी वो कान में चिल्लाता रहा कि हूँ तो तेरा दोस्त आखिर.
वो खैर रफ़्तार के आगे हार गया.
शाम को किसी ने कह कि अजमेर में बारिश ज़ोरदार है तो जैसे धमाका हुआ.बिलकुल पास. तंवर जी को उनकी बेटी की शादी पर बधाई देनी थी. कार्ड आये पन्द्रह दिन हो चुके थे.और औपचारिक बात ये बिलकुल नहीं थी. वे हमारे पडौसी रहे है. कुछ साल पहले मुझे तेज बुखार हुआ था और वो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था तब भाभीजी ने राइ-लूण (टोटका) करके बुरी नज़र वाले को ललकारा था.मैंने बधाई का फोन करने की सोची तभी ख्याल आया कि अभी नेटवर्क गडबड चल रहा है और बात शायद हो नहीं पाएगी.कल कर लूँगा फोन.दे दूँगा बधाई.बिलेटेड.
ओह. यूँ रोज के कामों की टू डू लिस्ट में इन सबको जोड़ नहीं पाता.और इन्हें किसी बहाने से याद आने के लिए छोड़ देता हूँ.पर बहुत याद से, सावधानी के साथ टू डू की लिस्ट अपने सेल फोन के नीचे रख देता हूँ.बाहर निकलने से पहले मोबाइल लेना ज़रूर याद रहता है.पर्स से भी ज्यादा. क्योंकि उधार देने के लिए दुनिया मरी जा रही है.उगाही काम अब काफी प्रोफेशनल हो गया है. हाई टेक.जानते हैं वे कि निकलवा लेंगे पैसा.
photo courtesy- D.C.Atty
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कितना सारा होम वर्क है !!!
ReplyDeleteमोबाईल बिल्कुल नहीं भूलते.. सही हे..
ReplyDeleteवैसे बहुत सारे काम बहुत जरुरी है.. नहीं होते कल करेंगे....
मोबाईल बिल्कुल नहीं भूलते.. सही हे..
ReplyDeleteवैसे बहुत सारे काम बहुत जरुरी है.. नहीं होते कल करेंगे....
अरसे बाद आमद भली लगी ....
ReplyDeleteचित्र तो कमाल का है ही.....कुछ ओब्ज़र वेशन भी काबिले तारीफ़ है ......मसलन .....
जिसकी द्रुत लय में अपने रुदन की विलंबित से बेमेल संगति बिठाते........
मसलन......
प्रतिक्रिया में उपजा विलाप ‘जिनेटिक’ है...
मसलन......
उगाही काम अब काफी प्रोफेशनल हो गया है.
ओर उधारी .?गरीबी भी तो कभी जेनेटिक मिलती है ....जिसका डी एन ए आसानी से बदलने को तैयार नहीं होता .....
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteताजगी है, जो रोजमर्रा के जीवन की बेड़ियों में छूटते जा रहे कुछ को अनावृत करती है.
बाकी डॉ. अनुराग की ही भांति मुझे ऐसी कई पंक्तियाँ अपील कर रही है. भाषा अधिक प्रभावित करती है तो लगता है कि कथ्य भी कहाँ कम है.
बधाई इस शिकायत के साथ की आमद में बहुत देर लगाते हो दोस्त.
यूँ कि बड़ा वक़्त लिया आपने इस बार आने में ....
ReplyDeleteमोबाईल बिल्कुल नहीं भूलते.. सही हे..
ReplyDeleteवैसे बहुत सारे काम बहुत जरुरी है.. नहीं होते कल करेंगे....
मुझे लगा किशोरजी ही बैटिंग कर रहे हैं और आप सिर्फ नॉन स्ट्रीकर एंड पर खड़े होकर उनका साथ दे रहे हैं, अब लगा एक शानदार शोट आपने भी मार दिया.
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद कुछ लिखा है हुज़ूर, मज़ा आ गया, जैसा में हमेशा कहता हूँ, आपका ओबज़र्वाशन कमाल का है, इसका उदहारण इस पोस्ट में रेल वाली बात ही ले लीजिए, और डॉ अनुराग ने बाकी सब कह ही दिया है.
सरकार इतने लंबे गेप अच्छे नहीं. लिखते रहा कीजिये, आपके लिए शायद यह टू डू लिस्ट में नहीं होना चहिये.
रिगार्ड्स,
मनोज खत्री
बहुत दिन बाद...
ReplyDeleteवैसे टू डू मोबाईल में ही बना लें..
बेहतरीन लेखन!!
बहुत दिनों बाद ...बहुत अच्छा लगा पढ़ के...
ReplyDeletechidiya,dosti,badhayee....duniya ki sabse nayab list hai aapki.
ReplyDeletemaine bhi ek list banayee hai man hi man ki kal in doston se to baat karna hi hai.
हमने तो मोबाइल को मिनी सहायक बना रखा है।
ReplyDeleteआप भी उसी पेशोपेश में रहे जिसमें हम रहे.. :-)
ReplyDelete"आँधियों की स्मृतियाँ हैं.कितनी अब तक आयीं और गई,सबसे तेज कौनसी थी कुछ याद नहीं..."
और दादी की स्म्रति सावन भादों जैसी... तर कर जाती है मरुस्थल में भी... परदेस में भी...
इतनी देर से आने की शिकायत करनी थी..मगर पोस्ट के जादू ने दिमाग की सारी सलवटें समेट दीं..आपकी सूक्ष्म पर्यवेक्षण शक्ति रोजमर्रा की चीजों से उन डिटेल्स को निकाल लाती है..जिनके अस्तित्व का वैभव हमारे जैसी सामान्य आँखें पकड़ नही पाती...पढ़ कर लगता है कि हमारे आस-पास कितना कुछ ऐसा बिखरा रहता है..जीवन को उसके विगत, बड़े या टूटे संदर्भों से जोड़ता हुआ..चिड़िया अतीत की बिसरी स्मृतियों की प्रतीक लगती है..जिन्हे अचानक सुबह की कोई आवाज नींद से जगा देती है..वहीं मोबाइल अनागत क्षणो की प्रतीक्षा का एक बहाना भर बन जाता है..सच मे इतनी समृद्धिशाली लिस्ट का हर दिन नया होना जीवन के गति और अप्रत्याशा का परिमाण ही है..
ReplyDeleteथोड़ा जल्दी-जल्दी आया कीजिये..
चित्र की तारीफ़ मैं भी कर दूँ.. बड़े दिनों बाद आपको देखकर ख़ुशी हुई.. फिर आपके पशोपेश से खुद को जोड़कर देखा तो पाया कि ऐसे कितनी ही लिस्ट्स हर शाम के ख़तम होने तक हो ही जाती है.. और शायद ऐसी ही कुछ लिस्टों में जोधपुर आने की तारीख कितनी ही बार बदल दी गयी.. पटरियों के पास कुत्तो का भौंकना जेनेटिक और रेगिस्तानी हैलुसिनेशन... वाह!!! ये होती है धार लेखन की...
ReplyDeleteदो तीन बार और पढूंगा अभी इसे...
बहुत ही शानदार पोस्ट है आपकी ..दिमाग की कई बत्तियां जल गई. टू डू की लिस्ट याद आ गई..
ReplyDeletenice
ReplyDeletevery well said ... its really disappointing to see the behavorial mutation belting around us ... until and unless need strkes a hard blow on us ... we hide behind so called daily rountine that some times everything seems so hazy and distant... very well written ... you write and evoke a sense .. but when the sense will evoke us .. god knows..
ReplyDeleteकथ्य में कुछ अनावश्यक हो..तो प्रवाह टूट जाता है..ऐसा आपके साथ कत्तई नहीं है....आपकी इस ’लिस्ट’ में भी नहीं...रही बात देर-आयद की.. मुझे लगता है...आप अनियमित होते हुए भी नियमित तो हैं...! फिर मिलेंगे...संजय जी...शुभकामनाएं.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकुछ एक ही ऐसे लेखक है ब्लॉग में जिनकी ओब्ज़रवेशन पे हैरान होती हूँ. कैसे के दृश्य आँखों के आगे घूम जाते है..रेगिस्तान और पानी का पुराना रिश्ता चिड़िया के बिम्ब से उभर आता है..ज़िन्दगी की रफ़्तार और कामों की लिस्ट इस कादर बढ़ चुकी है के यादें अक्सर हमें झंझोड़ के जगाती है..
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