हमेशा साथ रहने वाले भाई,बहन पिताजी अम्मा और करीबी दोस्त.किसी
को याद नहीं.खुद उसे भी नहीं कि एक कमरा हुआ करता है जिसके झरोखे से वो नीचे झाँक
सकता है और आते जाते लोगों को देख सकता है. कमरा लकड़ी के कुछ खम्भों से बने
मंदिर का हिस्सा है. उस मंदिर की चार दीवारी के ठीक अन्दर एक नाटा केले का झाड़ है
जिसमें मूंग फली जितने केले लगे हैं और जो कभी बड़े नहीं होते. मंदिर से बाहर गाँव
की गली है जिसके ख़त्म होने पर एक कीचड़ से भरा तालाब है.इस तरह एक पूरा लैंडस्केप
उस रील पर घूमता है जो बंद पड़े प्रोजेक्टर के पास धूल खाए ढेर के रूप में पड़ी है. यादों
का जंकयार्ड भी बहुत बड़ा होता है और इसमें कुछ जंग खाया भंगार तो ऐसा होता है जो
हमेशा अ-साझा ही रह जाता है.
ये पूरा भूदृश्य उसकी याद में कभी था भी तो जैसे सिर्फ क्लिफ
से ही टंगा भर था और अब तो वो कब का कई फीट गहरे खड्ड में गिर चुका था.रोज़मर्रा के
याद रखे जाने वाले कामों का परास धीरे धीरे इतना बढ़ता गया कि इसने एक दिन मूंगफलीनुमा
केलों को क्लिफ से धकेल दिया.इन्हें वापस लाना किसी बेहद गहरे कुँए से पानी का एक
लोटा खींचने जैसा था बल्कि उससे भी मुश्किल.सदियों में एक बार कभी किसी ख़ास
नक्षत्र में सूर्य उसके स्मृति- खड्ड में सीधा चमकता तभी वो लैंडस्केप उसके सामने
उद्घाटित हो सकता था.एक ब्रह्मांडीय टॉर्च चाहिए थी. पर जैसे रात में ४० वोल्ट के पीले
बल्ब में बुझते और सुबह बीड़ी के साथ खांसते किसी क़स्बे के पुराने टीले से फट पड़ता
है किसी दिन कोई उससे पुराना उससे बड़ा और वैभवशाली शहर बिना किसी कुदाल या गेंती
के चले,वैसे ही एक बार उसका अपना पूरा गाँव उसे मिल गया.ये कैसे हुआ इसका ठीक ठीक
पता नहीं. इन दिनों के मेन मार्किट में बने मंदिर के बाहर बिकते फूलों में से कोई
ख़ास रंग का फूल दिख गया या किसी चैनल पर दिखा हरा सांप था इसकी वजह, कह नहीं सकते.
जो भी हो पर उसे याद आने से ज़्यादा जैसे अपना हारा हुआ,छूटा हुआ इलाका ही मिल गया
हो और साथ में वो तमाम चीज़ें भी.
उस गाँव के घरों पर इतनी धूल चढ़ी रहती थीं कि वे दूर से देखने
पर दीमक के मृतिका-दुर्ग नज़र आते थे.मंदिर की लकड़ियों का बड़ा हिस्सा बुरादे के रूप
में बुहारा जा चुका था.इसकी चौहद्दी के भीतर अक्सर एक हरा सांप दिखाई देता था जो
उसी वक्त गुम भी हो जाता था.कमरे के झरोखे से नीचे उसे मंदिर में आते छोटे छोटे
लोग दीखते थे.शायद झरोखा काफी ऊंचा था या लोग ही ठिगने थे.केले का नाटा झाड़ नीचे
उतरकर देखने से भी नाटा ही नज़र आता था.इसलिए शुबहा था कि लोग भी नीचे उतरकर देखने
से ठिगने ही दीखते हों.
वो हुआ करता था कभी यहाँ, पर अब ये जगह उसकी स्मृतियों से
परित्यक्त थी.इस तरह कि उसका ज़िक्र भी नहीं था कहीं.पूर्वजन्म में घटी किसी घटना
की तरह ही घटी थी ये जगह उसके जीवन में जैसे.