किसी पवित्र पांडुलिपि की तरह
सहेज कर रखा गया था
हिसाब का ये पन्ना
कितनी बची है मूंग की दाल
और
कितना चाहिये इस महीने
मूंगफली का तेल
सब कुछ इसमें था
गृहिणी की उँगलियों के कोमल बंधन में
चौकन्नी चलती कलम से बनी लिखावट
बहुत सुंदर थी
किसी वाग्दत्ता के प्रेम पत्र की तरह
जिसके गोल गोल अंक और अक्षर
झिलमिलाते थे
पन्ने पर पड़े तेल के धब्बों के बीच.
चुटकी से उस दिन
कड़ाही में गिरी हींग
अब भी इस पन्ने पर
बची हुई थी
किसी दूरस्थ गंध के रूप में
पन्ने को न जाने
कितनी जगह और कितने कोणों से
छुआ था उसकी उँगलियों के पोरों ने
कि मसालों का कोई दक्षिण भारतीय बाज़ार
अब भी आबाद था
इसकी चारों भुजाओं की हद में
क्या गृहिणी हिसाब के पन्ने को
रसोई के काम का हिस्सा ही मानती थी
या रसोई से निवृत होकर किया जाने वाला काम?
पता नहीं
पर
ये हिसाब,प्रस्ताव,आकलन आदि के साथ
घर की ज़रूरतों और आकांक्षाओं का संधि पत्र था
इस पन्ने को सहेजने का यत्न
घर को सहेजने का यत्न ही था.