इस जगह बस्ती होने का कोई तुक नही था। यहाँ दुनिया से कोई सड़क नहीं आती थी,और यहाँ मौजूद लोगों ने बाहर जाने के जो भी मार्ग खोजे वो अंततः आपस में ही मिल गए। सूरज यहाँ से हमेशा सर पर ही सवार दिखाई देता था। चमकता, आग फेंकता। पर कहतें हैं न जीवन कहीं भी पाँव टिका लेता है और जहाँ जीवन नहीं टिकता वहाँ भी आदमी बस्ती बना लेता है। तो इस जगह बस्ती थी और एक पुरानी बस्ती थी,क्योंकि यहाँ के लोग और जानवर जिस कुए पर जिंदा थे वो एक पुराना कुआ था।
उस बाहरी आदमी का इस जगह आना कैसे हुआ ये हम नहीं जानते पर मान लेते है कि वो भी वैसे ही यहाँ आया होगा जैसे बीकानेरी भुजिया का पैकेट यहाँ आया था। इस वक्त ऊपर सूरज अपनी और से लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। आते ही उसे प्यास लगने लगी। अब तक अपने साथ जितना पानी लाया था, तकरीबन ख़त्म हो गया था। उसने पानी का स्रोत ढूंढ़ना शुरू कर दिया। यहाँ पानी कहाँ होगा, उसने सोचा। पर तुंरत हलकी सी राहत इस बात से भी हुई की जिस तरह यहाँ बस्ती होने का कोई तुक नहीं है फ़िर भी बस्ती है वैसे ही यहाँ पानी होने का कोई तुक तो नही है पर पानी हो सकता है।
वो बकरियों के एक रेवड़ के पीछे हो लिए। और सच में कुछ देर बाद वो एक कुए के पास खड़ा था। यहाँ और कुआ?उसने मन ही मन इस आश्चर्य के घटने पर ईश्वर को धन्यवाद दिया पर साथ ही ये भी कहा कि भगवान् जा अब अंटार्कटिका में एक अदद खेजडी भी उगा आ।
तुंरत उसे प्यास सताने लगी पर थोड़ा काइयां होकर सोचने लगा-अब क्या डर,कुआ सामने है। एक विजयी मुस्कान लेकर वो कुए की और बढ़ा। एक मोटा रस्सा अपने साथ चमड़े का पात्र लेकर कुए की अतल गहराइयों में गिरता जा रहा था। कुछ देर बाद अपने साथ जल लेकर वापस आया। उसने अपनी हथेलियों को पात्र बनाकर जल लिया और तुंरत गले में उड़ेल दिया,पर ये क्या? पानी बेहद खारा था। थू..... उसने सारा पानी उगल दिया। पानी इतना खारा था कि कि इसे कोई पी ही नही सकता था। उसने पास खड़े आदमी से पूछा कि इतना खारा पानी लोग कैसे पी लेते है? जवाब में उसने जो कहा वो घोर विस्मयकारी था।जवाब था-पानी खारा नही बहुत मीठा है। उस आदमी ने एक बार और कोशिश की। पर नतीजा वाही था। पानी बेहद खारा था। पर उस जगह के सब लोग प्राणी मज़े से पानी पी रही थे।
उसने इधर उधर बेबसी में नज़र घुमाई। पास ही एक पत्थर पर किसी ज़माने में लिखा गया शिलालेख कह रहा था-
"इस कुए का निर्माण इस बस्ती के सभी लोगों ,जानवरों ने मिल कर किया। साठ पुरस खोदने पर भी इसमे एक बूँद पानी नही मिला पर तब तक जो पसीना बह चुका था वो इस कुए को भरने के लिए काफ़ी था।"
उस बाहरी आदमी का इस जगह आना कैसे हुआ ये हम नहीं जानते पर मान लेते है कि वो भी वैसे ही यहाँ आया होगा जैसे बीकानेरी भुजिया का पैकेट यहाँ आया था। इस वक्त ऊपर सूरज अपनी और से लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। आते ही उसे प्यास लगने लगी। अब तक अपने साथ जितना पानी लाया था, तकरीबन ख़त्म हो गया था। उसने पानी का स्रोत ढूंढ़ना शुरू कर दिया। यहाँ पानी कहाँ होगा, उसने सोचा। पर तुंरत हलकी सी राहत इस बात से भी हुई की जिस तरह यहाँ बस्ती होने का कोई तुक नहीं है फ़िर भी बस्ती है वैसे ही यहाँ पानी होने का कोई तुक तो नही है पर पानी हो सकता है।
वो बकरियों के एक रेवड़ के पीछे हो लिए। और सच में कुछ देर बाद वो एक कुए के पास खड़ा था। यहाँ और कुआ?उसने मन ही मन इस आश्चर्य के घटने पर ईश्वर को धन्यवाद दिया पर साथ ही ये भी कहा कि भगवान् जा अब अंटार्कटिका में एक अदद खेजडी भी उगा आ।
तुंरत उसे प्यास सताने लगी पर थोड़ा काइयां होकर सोचने लगा-अब क्या डर,कुआ सामने है। एक विजयी मुस्कान लेकर वो कुए की और बढ़ा। एक मोटा रस्सा अपने साथ चमड़े का पात्र लेकर कुए की अतल गहराइयों में गिरता जा रहा था। कुछ देर बाद अपने साथ जल लेकर वापस आया। उसने अपनी हथेलियों को पात्र बनाकर जल लिया और तुंरत गले में उड़ेल दिया,पर ये क्या? पानी बेहद खारा था। थू..... उसने सारा पानी उगल दिया। पानी इतना खारा था कि कि इसे कोई पी ही नही सकता था। उसने पास खड़े आदमी से पूछा कि इतना खारा पानी लोग कैसे पी लेते है? जवाब में उसने जो कहा वो घोर विस्मयकारी था।जवाब था-पानी खारा नही बहुत मीठा है। उस आदमी ने एक बार और कोशिश की। पर नतीजा वाही था। पानी बेहद खारा था। पर उस जगह के सब लोग प्राणी मज़े से पानी पी रही थे।
उसने इधर उधर बेबसी में नज़र घुमाई। पास ही एक पत्थर पर किसी ज़माने में लिखा गया शिलालेख कह रहा था-
"इस कुए का निर्माण इस बस्ती के सभी लोगों ,जानवरों ने मिल कर किया। साठ पुरस खोदने पर भी इसमे एक बूँद पानी नही मिला पर तब तक जो पसीना बह चुका था वो इस कुए को भरने के लिए काफ़ी था।"