ये उन दिनों की बात है जब मौत की सूचना लोग टेलीग्राम के ज़रिये भेजते थे। जब टेलीफोन इक्का दुक्का घरों में ही थे। जब शहर कई सारे मोहल्लों का जमावड़ा हुआ करता था। जब लड़की का घर की छत पर बार बार जाना घरवालों में शक पैदा करता था। जब प्रेम करना मुश्किल था, उसे निभाना बहुत मुश्किल और प्रेम के लिए मरने से प्रेम में जीना बहुत बहुत मुश्किल था।
उन्हीं दिनों में से एक दिन उस लड़की ने लड़के से कहा ये रास्ता खतरनाक है। तुम्हारा और मेरा प्रेम असंभव है। इस पर हमारे घरवाले कभी राज़ी न होंगे। तब लड़के ने कहा मैं इस प्रेम के लिए जान तक दे सकता हूँ। लड़की ने हंस कर कहा ये तो बहुत आसान है। प्रेम के लिए जी सकते हो?
लड़के ने लड़की का हाथ अपने हाथ में लेना चाहा तो लड़की उससे दूर हो गई। लड़के ने बहुत इसरार किया। अपने प्रेम के निर्दोष होने की बात कही। तब लड़की ने कहा अगर तुम्हारा प्रेम खरा है तो मेरे लिए नील कुरिंजी का फूल ले आओ। लड़के ने इस फूल का नाम पहली बार सुना था। उसने भटक भटक कर पता किया। वो फूल उसके यहां से बहुत दूर दक्षिण में खिलता था और वो बारह साल में एक बार। लड़का, जब भी वो फूल खिला, लड़की के लिए वो फूल ले आया। इसके लिए उसने क्या कुछ नहीं किया। उसके साथ क्या कुछ नहीं हुआ। उसने बंजारों की सोहबत की। साधू फकीरों के पास गया। हाथियों की सवारी की। ठगों-लुटेरों ने उसे कई जगह लूट लिया। जंगली जानवरों ने उसकी देह को जगह जगह से नोच खाया। वो हफ़्तों भूखा रहा, तब जाकर उसे नील कुरिंजी का फूल नसीब हुआ। और हज़ारों योजन की यात्रा के बाद जब वो फूल उसने लड़की को दिया तो वो फूल एकदम ताज़ा था। बिलकुल उस लड़की की तरह जो अभी अभी नहा कर आई हो।
लड़के ने पूछा क्या मेरा प्रेम एक दम खरा नहीं है ? लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। अब उसे कोई जवाब देने की ज़रुरत भी नहीं थी। लड़के ने जवाब की प्रतीक्षा भी नहीं की। लड़की ने हंसकर कहा - 'तुम इस सवाल की तरह एकदम फालतू हो।'
उसके बाद दोनों ने क़सम खाई कि इस प्रेम को जीवन भर साथ रखना है।
इस कहानी के पचास बरस बाद दुनिया बहुत बदल चुकी है। संवाद अब 4 जी की तरंग पर सवार होकर किया जाता है। रोज़मर्रा के काम अब ऐप के ज़रिये किये जाते हैं। शहरों का हुलिया बदल चुका है। ऊंची इमारतें हैं। खरीददारी के लिए अब वो दुकानें नहीं हैं जिनमें बोरियों में गुड़ रक्खा रहता है और भिनभिनाती मक्खियां रहती है, बल्कि चमचमाते और जगमगाते मॉल्स हैं। लेकिन हवा में अब भी प्रेम है भले उसकी तासीर और तरीके में फ़र्क़ आ गया है।
संदीप और कांची इस बदली हुई दुनिया में रहने वाले नौजवान हैं। संदीप और कांची एक ही शहर में रहते हैं और सोशल मीडिया के ज़रिये एक दूसरे से जुड़े हुए भी हैं। दोनों का परिचय सामान्य सा है पर उनके कई साझे दोस्त हैं जो उनके वास्तविक दुनिया के दोस्त हैं। संदीप एक चित्रकार है सोशल मीडिया पर अपनी पेंटिंग्स के बारे में में बताने के साथ साथ कुछ न कुछ लिखता रहता है। कभी सामाजिक मुद्दों पर तो कभी कोई कहानी कविता। वो व्यक्तिगत बातें भी शेयर करता रहता है। सोशल मीडिया पर उसकी निरंतर उपस्थिति रहती है। पेंटिंग्स के दुनियां में तो बेशक उसका नाम है, वो लिखता भी अच्छा है। इसलिए उसकी फ्रेंड लिस्ट भी खूब लम्बी चौड़ी है। कई बार उसकी पोस्ट को कांची ने लाइक किया है और कुछेक बार हल्की फुल्की तारीफ की टिप्पणी भी डाली है। लेकिन इससे ज़्यादा नहीं। संदीप को कभी नहीं लगा कि कांची उसकी करीबी दोस्त है। ऐसा लगने का कोई कारण भी नहीं था। दोनों एक ही शहर के थे, उनके कॉमन फ्रेंड्स थे पर वे दोनों परस्पर सिर्फ परिचित भर थे। संदीप इतना ज़रूर जानता था कि कांची एक सिंगर है। उसकी आवाज़ में नैसर्गिक मिठास थी और वो संगीत की दुनियां में मज़बूती से आगे बढ़ रही थी। दोनों का मिलना अभी कुछ अरसा पहले ही तो हुआ था जब संदीप की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी में कांची अपने दोस्तों के साथ आई थी। दीर्घा में संदीप ने सबको वेलकम किया था। कांची से मिलकर उसे अच्छा लगा था। कांची ने उसके चित्रों को बहुत मन से देखा था। वास्तविक दुनिया की इस मुलाकात के बाद दोनों सोशल मीडिया पर औपचारिक रूप से जुड़े रहे पर दोनों में कई दिनों तक अगली किसी 'वन ऑन वन' मुलाक़ात का आग्रह नहीं था। पर ये सिलसिला एक दिन टूटा। हुआ यूँ कि संदीप ने पिछले वैलेंटाइन्स डे पर एक पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर की थी जिसमें उसने लिखा था -
"आज प्रेम दिवस है। मैं आज बरसों पुराने प्रेम के अटूट बंधन को यहां उजागर कर रहा हूँ। मेरी दादी पिछले महीने स्वर्ग सिधार गयी है। उन्होंने जीवन को भरपूर जिया था। उन्होंने अपने आखरी दिनों में मुझसे एक बात कही थी। अपने प्यार के बारे में। शादी से पहले मेरे दादाजी से उन्होंने नील कुरिंजी का फूल लाने को कहा था और मेरे दादा ने इस फूल के लिए खूब कष्ट उठाकर लम्बी यात्राएं की थी। आखिर में वे इस फूल को लाने में कामयाब हुए थे। फूल हासिल करने के महीनों बाद इस शहर में आकर उन्होंने दादी को फूल दिया तो वो बिलकुल ताज़ा रहा। प्रेम की ताज़गी उसमें बनी रही। आप सबको प्रेम दिवस मुबारक "
इस पोस्ट को पढ़ने के तुरंत बाद इनबॉक्स में कांची का सन्देश चमका -
"मुझे आपसे जल्द मिलना है। दिन, जगह और समय बताएं। और क्या ये जल्द हो सकता है ?"
मैसेज पढ़कर संदीप कुछ सोचने लगा। क्या कांची पेंटिंग- प्रदर्शनी के बाद से ही मुझसे अलग से मिलना चाहती थी और वैलेंटाइन्स डे की पोस्ट ने इसमें किसी उत्प्रेरक का काम किया है? कांची से एक खास मुलाकात करने का विचार संदीप के कोमल कोनों को छू गया। उसने तुरंत मैसेज का जवाब दिया और अगले दिन दोपहर 12 बजे मॉल के फोर्थ फ्लोर के फ़ूड कोर्ट में इंतज़ार करने का वादा कर दिया।
संदीप को अपने किसी ख़ास से मिलने के लिए इस मॉल का फ़ूड कोर्ट ही सबसे ठीक लगता था। तमाम भीड़ के बावजूद मॉल में आपकी प्राइवेसी को कोई खतरा नहीं है। असल बात तो ये है कि लोग अब आपकी परवाह नहीं करते। कोई जान पहचान वाला मिल भी जाए तो उसके पास ठहर कर बात करने ले किये समय नहीं होता। और वैसे भी मॉल अपने आप में एक अलग ही दुनिया है। आप एक बार घुस जाइये तो पूरा घूमकर बाहर आने में कई घंटे लग जाते है।मां बाप खरीददारी में व्यस्त रहते है तो बच्चे आइस पाइस खेलते रहते हैं।
फिर भी संदीप को दोपहर का वक्त ठीक लगता था जब मॉल में गिनती के लोग होते थे और फ़ूड कोर्ट में आपको अपनी पसंद का कोना आसानी से मिल जाता था। आज वो कांची से मिलने के लिए इसी मुक़र्रर जगह आ रहा था। अपने घर से यहां तक आने में उसे शहर को ऊपर से नीचे तक पूरा काटना पड़ता था। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए उसे पूरा खोद दिया गया था। आधुनिक मशीनों से शहर के पथरीले सीने को छलनी किया जा रहा था। बाद में इन सबका का कुछ अच्छा ही बने, फिलहाल शहर में सड़कों पर जगह जगह 'असुविधा के लिए खेद है' के बोर्ड टंगे थे। इस वजह से ट्रैफिक का हाल बुरा था। उसे बेहद कोफ़्त होने लगी। उसे बार बार लग रहा था कि उसके आगे सारे के सारे गाड़ी वाले कहीं सो तो नहीं गए थे। खीझ में वो हॉर्न पर हॉर्न दिए जा रहा था। चूँकि वो घर से काफी पहले रवाना हो गया था इसलिए वो सही वक्त पर मॉल पहुँच गया और कुछ ही देर बाद फ़ूड कोर्ट में था। कांची एक कार्नर टेबल पर पहले ही वहां बैठी थी। उसके अलावा वहां उस वक्त कोई और नहीं था।
उसने संदीप का मुस्कुराकर स्वागत किया। बैठने के बाद कांची की इजाज़त से उसने दोनों के लिए एकबारगी कॉफ़ी आर्डर की।
"मैंने कल की आपकी पोस्ट पढ़ी थी, नील कुरिंजी...... " सिर्फ सन्दर्भ की और इशारा कर बात अधूरी रख दी।
" हाँ, कल वैलेंटाइन्स डे था तो दिन के हिसाब से मैंने अपनी एक निजी बात शेयर कर दी। मेरी दादी ने ही मुझे बताया था कि उन्होंने शादी से पहले मेरे दादा से नील कुरिंजी की फरमाइश की थी जो आज भी पूरी करना मुश्किल है तो उस ज़माने में तो एक असंभव काम था। पर प्यार तो असंभव कामों का हौसला दे देता है। "
" एक बात पूछूं" - कांची ने कहा - " क्या जिनसे आपकी दादी ने वो फरमाइश की थी वो आपके दादा ही थे ?"
"आप भी क्या बात करती हैं। और कौन होगा"? संदीप ने बेहिचक जवाब दिया।
कांची कुछ देर चुप रही। फिर उसने कहा -
" असल में मेरे दादा की मृत्यु भी कुछ महीने पहले ही हुई है। वो मेरे बेस्ट बडी थे। मैं उनसे कई बातें शेयर करती थी। और मैं अक्सर उनसे पूछती थी कि दादा आपने कभी किसी से प्रेम किया, और वो हर बार मेरी बात टाल देते थे। अपनी मृत्यु का जैसे उन्हें पूर्वाभास हो गया था। अपने अंतिम प्रयाण से एक दिन पहले उन्होंने मुझे बुलाकर कहा था कि बरसों पहले उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया था और उस प्रेम के लिए वे सुदूर दक्षिण में नील कुरिंजी का फूल लेने चले गए थे। फूल हासिल करने और लड़की तक पहुँचाने में महीनों लग गए थे पर उन्होंने कहा वो फूल एकदम ताज़ा रहा। मेरे दादा ने स्वीकार किया कि जिस लड़की से उन्हें प्रेम हुआ था वो मेरी दादी नहीं थी। "
अचानक संदीप के मन आलोक से भर उठा। उसे समझ आया था कि उसकी दादी ने ये कभी नहीं कहा था कि उन्होंने 'दादा' से ऐसी फरमाइश विवाह से पहले की थी। ख़ुद उनके शब्दों में " मैंने 'उनको' नील कुरिंजी का फूल लाने को कहा। " ये जो 'उनको' शब्द था ये दादा के लिए नहीं उस लड़के के लिए था जो बाद में कांची के दादा हुए।
संदीप काफी देर तक चुप रहा। अपने में ही खोया। फिर उसने कहा - " सच में दोनों अपने प्रेम को साथ लेकर जिए। उनकी शादी भले ही नहीं हो सकी पर उनके बीच का प्रेम दोनों में ज़िंदा रहा। अपने विशुद्ध अपरिवर्तित और पवित्र रूप में। "
संदीप की आँखों में पानी भर आया था। कांची की आँखें भी छलक रही थी।
इसके बाद दोनों कई बार मिलते रहे। कोई आग्रह नहीं। मिलने की कोई व्यग्रता नहीं। वे दोनों एक अनजान रिश्ते से बंध गए थे। अपने पूर्वजों के प्रेम से वे इतने आप्लावित थे कि अभी उन्हें किसी नाम विशेष वाले बंधन में बंधने की जल्दी नहीं थी। वे इस अहसास से ही संतृप्त थे कि आधी सदी पहले एक लड़के और लड़की ने ऐसा प्यार किया था जिसके साथ कोई शर्त अटैच्ड नहीं थी। साथ रहने की भी नहीं। और जो अपने तात्विक रूप में इतना पवित्र था कि संदीप और कांची के मन में अब तक चन्दन की तरह महक रहा था। दोनों को लग रहा था कि उन्हें बताकर उस प्यार के अंश को हस्तांतरित किया गया है। और अब इस अमूल्य विरासत की रक्षा का दायित्व उनका है।
आज 14 फरवरी है। वैलेंटाइन्स डे। संदीप और कांची एक बार फिर मॉल के उसी फ़ूड कोर्ट के कोने पर बैठे हैं। दोनों काफी देर से अपने में ही खोये हैं। वे तीसरी कॉफी ख़त्म कर चुके हैं। पर दोनों में से कोई इस मुलाक़ात को आज खत्म नहीं करना चाहता। मॉल में आज और लोग भी आस पास बैठे हैं। कई उस फ्लोर पर यूँ ही गुज़र रहे हैं। उन दोनों के बीच एक साझा एकांत है जिसमें वे बैठे है। ये एकांत बहुत घना और ठोस नहीं है बल्कि एक झीना और रेशमी आवरण की तरह उनसे लिपटा है।
कांची के मोबाइल की स्क्रीन नोटिफिकेशन साउंड के साथ चमक उठी। कांची ने देखा - नीलकुरिंजी के फूल की फोटो थी और सिर्फ इतना लिखा था - " मुबारक "
भेजने वाला उसके सामने बैठा संदीप ही था। कांची ने उसकी और देखा तो वो मुस्कुरा रहा है। उसके चेहरे पर भी मुस्कान की रेखा फ़ैल गई।