Saturday, February 21, 2009

किस्सालोक में कहीं खो गई है वो


कहानी सुनाओ!उसकी नन्ही सी बेटी रात को सोने से पहले ये आदेश सुनाती। वो याद करने की कोशिश करता। उसे याद आता, 'प्यासा कौवा','लालची बन्दर',' रंगा सियार ' या ऐसा ही कुछ। और ये सब वो उसे कई बार सुना चुका था। उसे कई बार कुछ भी सुनाने लायक याद नही आता तो उसकी पाँच साल की बेटी कोई सुनी हुई कहानी सुनाने को कह देती।
कई बार वो याद करता या याद करने की कोशिश करता कि ख़ुद उसके बचपन में उसे कितनी तरह की कहानियाँ सुनने को मिली थीं। तब प्यासा कौवा उसे किसी ने नहीं सुनाई थी। पहली बार ये कहानी उसने अपनी अंग्रेज़ी की किताब में पढ़ी थी, और फ़िर रट कर याद भी की थी.अपनी बच्ची को सुनाने के लिए उसे अब कबरी चिडिया की कहानी याद नही रही थी। और उस कहानी को वो इस महानगर में ढूंढ भी नही सकता था। शायद अपने कस्बे में भी वो कहानी उसकी दादी के साथ कहीं दूर सिधार चुकी थी।
स्मृति के तंतुओं में सिर्फ़ इतना ही अटका रह गया था कि कबरी चिडी की बहन ने अपनी चोंच सोने से मढवाई थी और इसका उसे बहुत गुमान हो गया था। इसके आगे...........सब अस्पष्ट।
प्यासा कौवा की रटंत लीला ने ऐसी कई कहानियों को स्मृति के लोक से अपदस्थ कर दिया था। या शायद लंबे समय से उसने दादी को कायदे से याद ही नही किया था। कबरी चिडिया कहानी याद करने कि कोशिश में उसे दादी का बोलता चेहरा भी ज़रूर याद आता था। पर अब बड़ा मसला ये था कि बेटी को रोज़ रात कहानियाँ कहाँ से लाकर सुनाये?उसके दिमाग में बार बार ये आता कि बच्चों की इन कहानियों के सन्दर्भ,पात्र, लोक,देश, काल -ये सब क्यों नहीं बदलते। बच्चे इस ज़माने में भी तोता, राजकुमार, राजा, जादूगर, बहेलिया जैसे शब्द कहाँ से समझ जाते है? क्यों दादी की कहानियाँ हमेशा प्रासंगिक होती लगती है?क्या ये कारण है कि हर पात्र-खल पात्र को नैतिकता का एक बारीक सूत्र जोड़े रखता है। इसीलिए इन कहानियों में डाकिन भी सात घर छोड़ती है। यानी सगे सम्बन्धियों को वो भी छोड़ती है।
वो सोचता कि बड़ी मजेदार बात है-' राजा' आजकल बच्चों के निकनेम के तौर पर भी नहीं पसंद किया जाता पर कहानियों में वो आज भी राजा है। उतना ही ताकतवर।न्याय करता हुआ.हाँ, पर वो न्याय छीनता नहीं सकता. छीनेगा तो उसका सिंहासन कोई न्यायप्रिय ले लेगा.
रात को बिटिया का हुक्म राजा के हुक्म की तरह होता. कहानियों के लोक में अपनी उपस्थिति को रेखांकित करता. ये आदेश उसे चाहते हुए भी मानना था.कहानियाँ अब उसे ज़बानी याद तो थी नहीं लिहाजा उसने सोचा कि किसी किताब से वो रोज़ रात को एक कहानी पढ़कर सुनाएगा. इन कहानिओं के पात्र भी गल्पलोक के ही थे.मंत्री के षडयंत्र,साधू की भक्ति,राजकुमार का घोड़ा,जंगल और तिलस्म,सब कुछ था इनमे. रोज़ एक कहानी. वो शुरू होता और बीच बीच में बेटी के चेहरे के भाव पढता.उसे लगता बेटी कहानी के भूगोल में पहुँच गई है. और..ख़ुद उसे भी कई बार लगता जैसे वो भी इन्ही पात्रों के बीच पहुँच गया है. इन लोककथाओं में भगवान् कम ही दिखाई पड़ते थे और कोई ख़ास भगवान् तो यदा कदा.दैवीय से ज्यादा यहाँ नैतिक व्यवस्था थी.सरलता यहाँ पेंचदार चीज़ों से हमेशा जीतती थी. छल यहाँ हमेशा छला जाता था.जादू और तिलस्म को एक बकरी भी अंततः छिन्न भिन्न कर ही लेती थी.
धीरे धीरे उसने खूब सारी कहानियाँ बेटी को सुनाने की प्रक्रिया में पढ़ डाली.देश विदेश की.चीन की,अरब की,रोमानिया की,अफ्रीका की.सिंदबाद जहाजी की यात्राएं.विक्रम वेताल.पर इस संसार को मथ लेने पर भी कबरी चिडिया उसे कहीं नहीं मिली.गूगल का खोज यान भी यहाँ नाकाम ही हुआ. इस कहानी का पता सिर्फ़ एक ही दे सकता था. उसकी दादी. और वो अब इस लोक में नहीं.
घर की खिड़की से बाहर उसने निष्प्रयोजन ही एक निगाह डाली और वो चौंक गया.पेड़ की निचली डाली से लटका वो मिटटी का बर्तन कहाँ था जहाँ चिडियाएँ पानी पीने आती थीं. ये बर्तन उन्हें जल किलोल का मौका भी देता था. उसे याद आया की मिटटी का वो बर्तन उसने सालों से देखा ही नहीं था.और इस महानगर में तो शायद कभी नहीं.
वो याद करने लगा था कि कितने महीने पहले उसने घर में मज़े से अधिकार जमाती चिडिया को देखा था.

11 comments:

  1. प्रेम चंद जी हो या फ़िर फणीश्वर नाथ रेणू आपने आंचलिक जीवन के साथ कथा क्रम को साहित्य के हाशिये पर जाने से बचाए ही नहीं रखा वरन उसे अक्षुण और जनप्रिय बनाया उन के पात्रों में जीवन उहापोह रोजमर्रा के संकट और आशाओं के अद्भुत संसार के बीच आरोहण जारी रखता है ये उस ग्रामीण संसार की आश्चर्यजनक उपलब्धियां है किंतु आप एक अन्य प्रश्न लेकर आए है खोती जा रही संपदाओं में दादी नानी की कहानी को भी शामिल किया जाए, आपने सात घर टालने को प्रत्यक्ष करते हुए अपनी गूढ़ बात को एक नन्ही बच्ची और पिता के माध्यम से उदघाटित किया है . मुझे आपके बात कहने का सलीका पसंद आया.

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  2. बहुत सुन्दर। इन कथाओं की ओर लौटें तो हम अपनी खोई जिन्दगी ढूंढ़ लेंगे।

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  3. बहुत सुन्दर!!!पुराने दिन याद आ गये,जब सोने से पहले दादी से एक कहानी की फ़रमाईश करते थे और बदले मे पहाडे या १०० तक उल्टी गिनती सुनानी पड्ती थी।कहानी सुनते-सुनते दादी के पलंग पर सो जाते थे और सुबह उठ कर माँ से पुछते थे-यहाँ कौन लाया?

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  4. बच्चों की छोटी छोटी कहानीयां, जीवन के कई गहरे रहस्य दे जाती है...

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  5. Sanjaya ji,
    bachchon ko aaj aisee hee kahaniyon kee jaroorat hai.aj hamare jeevan se lok kathayen khatm ho rahee hain.
    achchhee post ke liye badhai.

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  6. आज मुझे मेरी दादी की सुनाई कहानियां याद ही नहीं आ रही, पता नहीं कैसे दादी उस उम्र में भी उन कहानियो को याद रख पाई थी . आपकी कबरी चिड़िया जैसी ही स्थिति है हमारी भी!

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  7. यही सब कथाएं तो हैं जिनके कारण बच्चों में थोडी बहुत मासूमियत बाकी है वरना आज कल के बच्चे तो॥ मुझे याद है कैसे मैं चम्पक, नंदन वगैरह के नए अंक पाने के लिए लालायित रहती थी। आजकल वो कथाएं सुनने को नही मिलती।

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  8. घर की खिड़की से बाहर उसने निष्प्रयोजन ही एक निगाह डाली और वो चौंक गया.पेड़ की निचली डाली से लटका वो मिटटी का बर्तन कहाँ था जहाँ चिडियाएँ पानी पीने आती थीं. ये बर्तन उन्हें जल किलोल का मौका भी देता था. उसे याद आया की मिटटी का वो बर्तन उसने सालों से देखा ही नहीं था.और इस महानगर में तो शायद कभी नहीं.
    वो याद करने लगा था कि कितने महीने पहले उसने घर में मज़े से अधिकार जमाती चिडिया को देखा था....sahi kha aapne ab mahanagaron me pakchiyon ka kalrav kahan....!

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  9. Mai aayee to chand palon ke liye thee...par padhteehee jaa rahee hun...ye lekh naa jaane kya, kya yaad dilaa gayaa...

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  10. मेरी दादी भी एक कहानी सुनाती थी...टिपटिपिया की. उस कहानी को मैं भी बहुत सालों से ढूंढ रही हूँ पर मिलती नहीं.
    उस कहानी के साथ गाँव में दादी की खटिया, ढिबरी और कुएं की ओर गिरती दीवार भी खो गयी है. रजाई में बमुश्किल पैर ढके बहुत से भाई-बहन भी...

    इतना कुछ खो गया है कि उसपर एक कहानी लिखी जा सकती है...मगर आज भी दिल दादी की उस कहानी को खोजता है.

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