Tuesday, March 12, 2013

जाते हुए लोग



आसमान काला है.
तिरछी गिरती बारिश की धारें
किसी नामालूम जगह से आतीं हैं

चौराहे की हाई मास्ट लाइट गुल है
ट्रैफिक कुछ और तेज़ भागता  है
लोग बदहवास लगते हैं.

आते हुए साइकिल सवार को लगता है
लोग शहर छोड़ कर भाग रहें हैं.
उसे युद्ध पर बनी कोई फिल्म याद आती है
जिसमें लोगों का पलायन
किसी अँधेरी रात में हो रही  
मूसलाधार में होता है
साइकल सवार की सोच में 
कोई सिनेमाई पृष्ठभूमि है
पर इस गुज़रते धुंए और शोर में
कई पलायन वास्तव में घटते है

इनमें से कुछ इस चौराहे पर लौट कर नहीं आते
कोई इस शहर में दाखिल नहीं होता दुबारा
उनकी साइकल के कैरियर में
कुछ भी नहीं बंधा है
इस जगह से कुछ भी ले जा नहीं रहे
पर उनके पैडल पर आघात को
इस शहर का गुरुत्व
बेअसर सा करता है.

न लौटने वालों को देखते हैं बिजली के बुझे खम्भे
थोडा उचकते हुए  
थोडा और बुझते हुए.

उस पार का एक मंदिर इस खग्रास में
किसी दिए की उम्मीद खो चुका है
एक बड़ी इमारत की छाया
उससे भी बड़ी
उससे भी डरावनी लगती है.