Wednesday, April 29, 2009

अपनों को खोने पर


इन दिनों के आसपास ही शायद
उसने अपने भीतर
प्रेम की पहली कौंध
महसूस की होगी
यही दिन रहे होंगे
जब उसने सोचा होगा
कि इंतज़ार हमेशा उबाऊ नहीं होता
और नोट बुक में गणित के सूत्रों के अलावा भी
बहुत कुछ लिखा जा सकता है
मसलन कविता या पत्र।
इन्हीं दिनों मां की डांट भी
ज्यादा सुनी होगी
और उतनी ही ज्यादा
अनसुनी की होगी
पहली बार
शायद इन्हीं दिनों
दुनिया में अपने लिए
एक निजी आकाश की
कल्पना में रही होगी वो
वो उछल कर आसमान छू लेती थी
और रुई के फाहों की तरह
तैरते हवा में
उतर आती थी धरती पर.
इस जवान होती लड़की को लेकर
घर में अब उसके बारे
सोचा जाने लगा था
कि किस घर में वो आगे
सुखी रह सकती है
और पढाई कहाँ तक
करवाई जाय
क्या इतनी काफी है
या रिश्ता पक्का होने तक
कोई हर्ज़ नहीं, वगैरह वगैरह
इस तरह उसकी ज़िन्दगी में आम
और ख़ास सब चल रहा था
पर इन्हीं दिनों एक दिन
सपनों की बारीक बुनाई में
व्यस्त उसके हाथ
सहसा रुक गए
एक अखबार या पुलिस या डॉक्टर के लिए
ये रोज़ होने वाली आम दुर्घटना थी
पर उस घर के लिए
ये बार बार आकर खरोंचने वाली
स्मृति थी
उस स्वर का बीच में ही
टूट जाना था
जिसके बिना पूरा नहीं हो सकता था कोरस।
करोडो प्रकाशवर्ष की लम्बाईयों
और समय के भयाक्रांत करते विस्तार तक जीते
तारों के इसी ब्रह्माण्ड में
कोई सिर्फ उन्नीस वर्ष में शेष हो जाए
सड़क पर टक्कर के बाद
भौतिकीय नियमों से परास्त हो जाय
क्या कोई भी दिलासा तर्कपूर्ण हो सकती है
मैं फोन पर अपने मित्र को
संवेदना प्रकट करने से पहले
खोजता हूँ
सम भार के वे शब्द
जो अपनों को खोने से
उपजी पीड़ा को समझते हों
पर
आख़िर नियति के चक्र,
अविनाशी आत्मा, पुनर्जन्म, हौसला, हिम्मत जैसे
काम चलाऊ शब्दों से आगे नहीं बढ पाता
हो सकता है
कुछ सघन अनुभव
नितांत निजी होते हों
जिनका परस्पर व्यवहार
संभव नहीं

10 comments:

  1. किसी कविता में रवानगी ही उसकी आत्मा है.....किसी गध की भांति खुलती बंद होती हुई ........



    जब उसने सोचा होगा

    कि इंतज़ार हमेशा उबाऊ नहीं होता

    और नोट बुक में गणित के सूत्रों के अलावा भी

    बहुत कुछ लिखा जा सकता है

    मसलन कविता या पत्र।

    यहाँ वे कविता को एक दूसरी दिशा में धेकेल देते है .जीवन के एक दुसरे सोत्र को ढूंढते हुए .........


    करोडो प्रकाशवर्ष की लम्बाईयों

    और समय के भयाक्रांत करते विस्तार तक जीते

    तारों के इसी ब्रह्माण्ड में

    कोई सिर्फ उन्नीस वर्ष में शेष हो जाए

    सड़क पर टक्कर के बाद

    भौतिकीय नियमों से परास्त हो जाय


    यही हमारी सबकी पीडा है ...जिसे आपने शब्दों का जामा पहनाया है ....

    खोजता हूँ

    सम भार के वे शब्द

    जो अपनों को खोने से

    उपजी पीड़ा को समझते हों

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  2. काल के क्रूर धागों से बंधे जीवन के कच्चे क्षणों की गिनती शाश्वत और नश्वर के बीच किस तरह की जाये इसे आपकी कविता में बखूबी टटोला जा सकता है. आँगन में खिलते दिनों के बीच एका एक रुका समय का पहिया अवांछित और अस्वीकार्य हुआ करता है इस पीड़ा को आपका कवि ह्रदय नाम आँखों से देखता है. अनस्तित्व की परिभाषाएं कैसे लिखी जाये ? कैसे करें हम फिसलने को आतुर लम्हों के ख़त्म हो जाने को स्वीकार.


    ये रोज़ होने वाली आम दुर्घटना थी

    पर उस घर के लिए

    ये बार बार आकर खरोंचने वाली

    स्मृति थी

    उस स्वर का बीच में ही

    टूट जाना था

    जिसके बिना पूरा नहीं हो सकता था कोरस।

    करोडो प्रकाशवर्ष की लम्बाईयों

    और समय के भयाक्रांत करते विस्तार तक जीते

    तारों के इसी ब्रह्माण्ड में

    कोई सिर्फ उन्नीस वर्ष में शेष हो जाए

    सड़क पर टक्कर के बाद

    भौतिकीय नियमों से परास्त हो जाय.


    बहुत सुन्दर कविता, मेरी बधाई स्वीकर करें !!

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  3. सुन्दर कविता लिखी है पूरी पढी और कई कई बार पढी.

    मैं फोन पर अपने मित्र को
    संवेदना प्रकट करने से पहले
    खोजता हूँ
    सम भार के वे शब्द
    जो अपनों को खोने से
    उपजी पीड़ा को समझते हों...


    .

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  4. मैं बस एक बात कहूँगा की मुझे कविता बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी ...दिल डूब गया इसमें

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  5. संजय जी मैं भी डूब गयी इस कविता में! बहुत खूब लिखा आपने!
    आपको मेरा ब्लॉग पसंद आया, इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

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  6. Sanjay ji very well written. I loved how you expressed something stunning in such matter of facts words. You have an elegant style.

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  7. संजय जी,
    आप कि रचना अपने उत्तरार्ध में चरम पर पहुँचती है....भाव अपनी सम्पूर्णता को प्राप्त करता है.आरम्भ से ही कसावट होती तो और बेहतर हो सकती थी...पर शुरू से अंत तक एक सांस में पढ़ गया...मेरे विचार से इस कविता को बार बार पढने कि जो सहज इच्छा पाठक के मन पैदा होती है वह अपने आप में आपके लेखन की सफलता है.

    बधाई स्वीकार करें....

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  8. अहसास, दुर्घटना, खामोशी, बेबसी, शोक, संवेदनशीलता और कितने ही भावो को समागम है आपकी कविता में... हेरान हूँ बस!

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  9. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आप बहुत सुंदर लिखते हैं! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!

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  10. सुन्दर रचना
    बधाई

    बहुत दिनों से कलम खामोश क्यों??????????
    इंतजार अगली एक और खूबसूरत रचना का

    चन्द्र मोहन गुप्त

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