
कोई अपकेंद्री बल उसे तेज़ी से किसी अनजान दुनिया में फेंक रहा था। उसके अपने उससे दूर भागते प्रकाश बिन्दुओं में तब्दील हो गए थे। या वो ही उनसे दूर फेंका जा रहा था।उसकी अपनों से बनी दुनियाँ बहुत छोटी थी। पर उन्हें सहेजने का काम करने वाले स्मृति-कोष पर से उसका भरोसा उठ चला था। उस बेकार से थैले में बहुत पुराने हादसे अपने मौलिक चटख रंगों के साथ जस के तस थे और उसके अपनों की याद कभी कभार की टहल में ही सुरक्षित थी। उसे पक्का विश्वास हो गया था कि दिमाग में याद जमा करने वाला भाग दिमाग का कोई पुर्जा न होकर कोई अलग ही 'एंटिटी' थी। कभी कभी शैतानियत का खेल खेलने वाली।
किसी अपने को, जिसे वो ठीक से स्थिर देख सकता था तो वे उसके पूर्वज थे जो आसमान के किसी कोने में ठन्डे तारे के रूप में टिके थे और उसे निस्पृह भाव से एकटक देखे जा रहे थे। हर वक़्त देखे जाना असल में न देखना ही माना जाना चाहिए। कोई निर्जीव आँख ही आपको लगातार देख सकती है।
इस आती जाती दुनियाँ में भौतिक दूरियां नहीं बढ़ी थी फिर भी वो लगातार किसी और ही पठार पर दूर होता महसूस कर रहा था। एक शक्ति उसे उसके अपने स्थान के साथ भगाए जा रही थी। किसी कैप्सूल में बैठा वो सिर्फ धकेले जाने का अहसास कर रहा था। उस कैप्सूल में उसका अपना स्पेस सुरक्षित था पर उसमें वो एक ही था। चारों ओर पारदर्शी लसलसा जैल भरा था जो उसकी वहां से छूट भागने की तमाम कोशिशों का लिजलिजा किन्तु कामयाब जवाब था।
( photo courtesy- isabel )