Wednesday, July 20, 2011

जीवन की आंच में प्रेम के स्फुलिंग


मैं इस पर कुछ दिन पहले लिखना चाहता था जब विषय वस्तु और चित्रावलियाँ अपने सघन रूप में मौजूद थीं और मन इसी के आस पास टिका था.तब सोच भी बार बार इसी सवाल के गिर्द थी कि सब कुछ भयावह के बावजूद प्रेम यहाँ कितना सुंदर है! धीरे धीरे सरलतर होता हुआ अंततः जिसका रेशमी सूत्र सुंदर और ऋजु होकर हमारे पास रह जाता है.अब फिल्म की कई बातें तभी दिमाग में आएँगी जब इसे फिर से देखा जाएगा पर कथानक की चौहद्दी और उसका असर अभी भी सुरक्षित सा है.

जितना याद रह गया है उसके मुताबिक़ फिल्म ' नेवर लेट मी गो' दो लड़कियों और एक लड़के की कहानी है जो परस्पर प्रेम के त्रिकोण में कैद हैं.ये तीनों बचपन से ही एक रिहायशी स्कूल में पढते हैं जहां बहुत सारे दूसरे बच्चे भी रहते हैं. एक दिन एक टीचर उन्हें बताती है कि वे सब असल में दूसरे लोगों को अपने महत्वपूर्ण अंग दान करने वाले है और उनकी जिंदगी का और कोई मकसद नहीं है. उन्हें इसी लिए दुनिया में लाया गया है ताकि थोड़े बड़े होने पर उनके अंग एक एक कर बीमार लोगों में प्रत्यारोपित किये जा सकें.
वे सब एक नज़रिए से अपने शरीर को शनैःशनैः गिराते किसी भूतहा हिमालय की यात्रा पर है जहां से मृत्यु तक वे एक पूर्व निर्धारित मार्ग से पहुंचेंगे.

इस जानकारी के बाद मृत्युबोध लगातार एक कूबड़ की तरह साथ बना रहता है.दोनों लड़कियों में से एक का प्रेम उदात्त है और दूसरी का ईर्ष्या, अधिकार और जीतने के भाव वाला.इस तरह ये असल में त्रिकोण न होकर एक जटिल ताना बना है जो अपने सरलतम रूप में तभी आ पाता है जब देह अंग विहीन होती छीजने लगती है.आखिर में एक लड़की अपना अधिकार ईर्ष्या और जय सब छोड़ देती है और बाकी दो विशुद्ध प्रेम में आतें हैं और पहली बार मृत्यु के आयत से बाहर आने के लिए असफल प्रयास करतें है.

इस कल्पित दुनिया में जीने वालों के लिए भी बेहतर जीवन के साधनों की आकांक्षा नहीं पनपती. जो सहज रूप में उनमें उपजता है वो है प्रेम. हम नहीं जानते कि जिनकी देह एक विराट प्रयोग का हिस्सा भर है और आत्मा सिर्फ मृत्यु बोध से भारी उनमें प्रेम किस तरह आता है पर फिल्म बताती है या ये कल्पना करती है कि उनमें भी प्रेम सहजता से आ सकता है. जटिल समाजों से उपजी स्मृतियों के बिना भी प्रेम अपने गुम्फित ताने बाने के पूरे लाव लश्कर के साथ आ सकता है. और वो आखिर में जीवन की तीव्र लालसा पैदा करता है. वो जीवन मांगता है. 'मृत्यु के साथ और उसके बाद भी' वाला किताबी प्रेम यहाँ खारिज है. उसे जीवन चाहिए लंबा नहीं पर भरा भरा सा.

12 comments:

  1. आपने उत्सुकता बढ़ा दी है. अब तो देखनी पड़ेगी यह फिल्म.

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  2. कब से आपके इस मौन के टूटने का इंतज़ार था ...तभी मै सिनेमा को इस दुनिया के बेहतर बनाने का औजार मानता हूँ ..इस फिल्म को मैंने देखा नहीं है ...पर देखूंगा जरूर ..कुछ दिन पहले 'इमेजिंग अर्जेंटीना 'देखी थी .....ओर "फार गो अवे " ओर कितने विचार मन में उमड़ पड़े थे ..सोचता हूँ हिंदी सिनेमा इस माध्यम को मनोरंजन के नजरिये से ही क्यों देखता है ..कोई विचार कोई सोच का एक्सटेंशन देने वाले लोग अस्सी के दशक के बाद वैसे नहीं उमड़ रहे जैसे उस वक़्त थे .स्वस्थ कम्पीटीशन ....
    कभी मौका लगे तो एक फिल्म देखिएगा "आज का रोबिनहुड'.जी क्लासिक पे इत्तेफाक से देखी थी ...

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  3. बहुत उदास दिनों का फेरा था, मैं भी कुछ थका थका सा....
    आज ज़िन्दगी का स्वाद बदला. पढ़ लिया है, लगा कि कोई शब्द और शिल्प का एक निहायत अपना सा जादू जो खो गया था, लौट आया है.
    फिर फोन पर बात करता हूँ.

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  4. behtreen prastuti lekin main filme dekhta nahi, mahsoos karta hoon....sadhuwad

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  5. फ़िल्म अनूठी लग रही है, समीक्षा पसन्द आई।

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  6. मृत्युबोध का प्रभाव हर व्यक्ति पर अलग अलग होता है।

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  7. जटिल समाजों से उपजी स्मृतियों के बिना भी प्रेम अपने गुम्फित ताने बाने के पूरे लाव लश्कर के साथ आ सकता है. और वो आखिर में जीवन की तीव्र लालसा पैदा करता है. वो जीवन मांगता है......behad khoobsoorat.

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  8. दृश्‍य के भीतर कैद दृश्‍य...

    आखिर जीवन में भी यही कुछ है, बस एक एक अंग कटकर अलग नहीं होता, जीर्ण शीर्ण होता रहता है, लगातार...

    धीमी बायोलॉजिकल प्रक्रिया उसे तीव्रता से महसूस नहीं होने देती,

    आखिर प्रेम ही है जो जीने की, शायद भरपूर जीने की लालसा को कहीं अधिक बढ़ा देता है...

    शानदार प्रस्‍तुति संजय जी आपके फैन थे, हैं और रहेंगे :)

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  9. डोंट लेट मी गो’ सबसे पहले इसकाअ जिक्र आपसे ही सुना था..देखने का मौका तो नही मिला..मगर वाचलिस्ट मे शामिल थी..अभी इसके बारे मे आपका लिखा पढ़ कर उत्सुकता बढ़ी ही है...किसी फ़िल्म के बारे मे लिखा गया ऐसा टुकड़ा उसके प्रति सकारात्मक उम्मीदें ही पैदा करता है..वैसे आपको कलम उठाने को प्रेरित करने वाली ऐसी चीजों की कमी न पड़े आपके आसपास..यही उम्मीद है..और साझा करते रहेंगे.यह भी....

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  10. फिल्मों से तो खट्टी कर रखी है परन्तु आपकी कलम से इस प्रेम प्रसंग के बारे में जानकार अच्छा लगा.

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  11. कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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