Friday, October 17, 2014

हाथ

उसके हाथ बेमेल थे.वे उसके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते थे.जहां वो सुंदर सुकुमार सा था, उसके हाथ भद्दे थे.वो अक्सर हँसता नहीं था पर अगर उसे किसी बात पर हंसी आ जाए और उस वक़्त उसे कोई देख ले तो तो यही कहेगा कि कोई बच्चा हंस रहा है.

यद्यपि वो उम्र के लिहाज़ से बच्चा नहीं था.

उम्र उसकी ढलने लग गयी थी.वह अपने पूरे आकार में कोमल प्रतीत होता था.बस उसकी हथेलियां खुरदरी थी.एक बार किसी ने उससे हाथ मिलाने के बाद कहा था कि क्या वो काफी वर्जिश वगैरह करता है.उसने इसका अनुवाद इस तरह मन ही मन में किया कि उसके हाथ मज़दूर के हाथों की तरह सख्त हैं.उसे अपने सख्त हाथों से परेशानी नहीं थी बस उसे इसी बात से तकलीफ थी कि उसके हाथ बेमेल थे. वे बाकी शरीर के साथ असंगत थे.वो कई बार एक हाथ की उँगलियों को दूसरी हथाली के पीछे फेरा करता था.ये स्पर्श उसे सबसे ख़राब प्रतीत होता था.उसे लगता, वो काठ पर पर अपना हाथ फिरा रहा है और ये उसका हाथ नहीं हो सकता.एकदम बेजान हाथ.ऐसा ही दूसरे हाथ के साथ करने पर अहसास होता.

किसी ने इसे चर्म विज्ञानी के नज़रिए से देखा और कहा चमड़ी की कोई अलर्जी है ,किसी ने समुद्र विज्ञानी के नज़रिए से देखकर कहा, ये श्रमजीवी का हाथ है.और कोई इसे कौटुम्बिक लक्षण मानता जो पीढ़ियों से चलकर उस तक आया है, और आगे भी जारी रह सकता है.एक ओझा ने कहा कि इसके मूल में कोई प्राचीन शाप है.उसका दावा था, कि वो बता सकता है कि उसके किसी पूर्वज को क्या करने पर ऐसा शाप दिया गया था और जिसे आने वाली कई संततियों तक चलना था.उसे एक बार लगा कि उसे ओझा को पूछना चाहिए कि उसके पुरखे ने ऐसा क्या कर दिया था जिसका भुगतान उसे अब इतने साल बाद,न जाने कितने साल बाद,करना पड़ रहा है.और क्या मूल शाप अपनी तीव्रता में शक्तिहीन होता गया है या वैसा का वैसा ही है.अगर शाप ने अपनी शक्ति खोयी है तो अपने मौलिक रूप में वो कितना कष्टकारी रहा होगा?वो इसमें दिलचस्पी लेता तो शायद शाप के बारे में और खुलासा हो सकता था पर बिना पूछे ही उस सिद्ध ने इतना और जोड़ दिया था कि ये शाप किसी स्त्री का दिया है. इस बात को जान लेने के बाद उसकी इस बारे में और जानने की रूचि ख़त्म हो गयी.वो किसी भी रूप में अपने दादा का उपहास नहीं होने देना चाहता था.उसकी इच्छा जब इस दिशा के उपाय में थी ही नहीं तो इसमें आगे किसी दिलचस्पी का प्रश्न भी नहीं उठता था. असल में उसे अपने हाथों या कहें हथेलियों से कोई शिकायत नहीं थी. उसकी दिक्कत थी इनकी असंगति से. उसे लगता, उसके हाथ उसके नहीं हैं.  उसके मस्तिष्क से भेजे जाने वाले संदेशों की अनुपालना करने में भी हाथ तत्पर थे,उसके सभी काम वही करते थे,उन्हीं हथेलियों में से किसी एक पर तिल देखकर उसकी प्रेमिका ने कहा था कि ये अच्छे भाग्य का प्रतीक है,इन सब के बावजूद वो अपने हाथों से खुश नहीं था. अपने हीहाथों को लेकर उसकी नाराज़गी जायज़ नहीं थी,उसकी प्रेमिका ने कभी हाथों को लेकर ऐसी टिप्पणी नहीं की थी,यद्यपि उसने ये भी कभी नहीं कहा था कि उसे उसके हाथ कुछ ही खास प्रिय हैं.उसे याद आया कि वो अपनी प्रेमिका का हाथ अपने हाथ में लेना प्रायः स्थगित करता रहा है.वो अपने हाथ उसके कन्धों पर ज़्यादा रखता है.या फिर कटिप्रदेश के गिर्द.पर ये भी तय है कि आप किसी से प्रेम करें और वो आपका हाथ अपने हाथ में न लें,ये हमेशा चलते रहना संभव नहीं है.

वो कुछ कुछ डरने लगा.कहीं प्रेमिका उसके हाथ की वजह से उसे छोड़ न दे.अभी इसकी सम्भावना नहीं थी,बल्कि वो ऐसा सोच भी नहीं सकता था पर आगे प्रेम की सड़क में कितने बल हैं कहा नहीं जा सकता.उसने नारियल का तेल अपनी हथेलियों पर लगाना शुरू कर दिया.फिर भी उसे लगा हाथों का रूखापन गया नहीं है.हथेलियों की त्वचा पगथलियों  की चमड़ी की तरह सख्त ही बनी रही.वो झुंझला कर सोचता भगवान ने मेरी हथेलियां बनाते वक्त गाय के खुर की सामग्री तो काम में नहीं ली.वो ज्यादा मात्र में नारियल के तेल का इस्तेमाल करने लगा.कई एक बार वो जैतून का तेल भी ले आया पर उसे लगा हर लिहाज़ से नारियल का तेल ठीक है.उसकी हथेलियां अतिशय स्नेहन के कारण धूल मिटटी को चिपकाती जातीं और फिर वे गन्दी काली सी नज़र आने लगीं.पर वो हाथ धोकर फिर तेल लगाना नहीं भूलता.उसकी प्रेमिका ने भी इस बात को नोट कर लिया.काफी अरसे तक उसने इशारों इशारों में ऐसा ही कुछ इससे सम्बंधित कह दिया पर कोई औपचारिक शिकायत नहीं की.पर जब उसके सलवार और कुरते पर चीकट लगने लगी तो उसने शिकायत नहीं की,बल्कि वो जोर जोर से रोने लगी.शिकायत की स्थिति को लांघ कर सीधे ही ये आगे की अवस्था में पहुंचना था.उसके इस रुदन में उसे छोड़कर जाने का फैसला भी साफ़ सुनाई  दे रहा था.

अब तक उसके घर में नीले प्लास्टिक का ढेर लग चुका था.जहां देखो वहा नारियल के तेल की शीशियाँ.संकरे मुंह वाली,चौड़े मुंह वाली.छोटी मंझली और बड़ी.सब तरह की.पर उसके हाथ अभी भी मुलायम होने की मांग कर रहे थे.  

4 comments:

  1. अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको की गुज़ारिश और उन लकीरों में अपनी बात उसके ज़रिये कहने वाले परमात्मा को हिकारत की नज़रों से देखने का परिणाम इतना भयंकर होगा यह उसने पहले कैसे नहीं सोचा... बनाने वाले ने कुछ सोचकर ही बनाया होगा, उसने ये न सोचा कि वो करोड़ों में एक रहा होगा... और विधाता की रचना के साथ छेड़छाड़ का नतीजा तो भगतना ही था उसे... किसी ने उसके लिखे को अपने हिसाब से मोड़ना चाहा था - नतीजा ख़ून के धब्बे साफ़ करती ख़ुदकुशी के रूप में निजात पा सकी... और वो.. उसने भी वही गलती दुहराई - लाल ख़ून की जगह नीली डिब्बियों से जूझ रहा है वह!!
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    आज के इस शब्दचित्र ने रौंगटे खड़े कर दिये.. यकीन मानिये पूरी पोस्ट पढने के बाद अपने हाथों को बहुत ग़ौर से देखा मैंने और साबुन से धोकर आया, तब जाकर यकीन हुआ कि मैं वो नहीं!!!!!!!

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  2. ख़ुश हूँ कि आज पहला ही कमेण्ट मेरा है!! :) :)

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  3. खुरदुरा हाथ तो कोई बात नहीं पर आर्शीवादी मुद्रा वाला राजनीतिक हाथ भगवान करे किसी का न हो। पिछले छह दशक ऐसे हाथ की छत्रछाया में पूरे परिवेश को पगला कर छोड़ गए हैं।

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