Wednesday, March 4, 2009

आँख के जल में याद


एक सुंदर सी लगने वाली छतरी के पास खडा टूरिस्ट उसे मुग्ध भाव से देखता है।पत्थरों पर नक्काशी करते वक्त कारीगर के मन में ज़रूर कोई कोमल भाव उपजा होगा।पत्नी का स्पर्श शायद उसने फ़िर से महसूस किया होगा जो सृष्टि के एक और मामूली दिन को उसके लिए विशिष्ट बना गया था।
ये किसी रानी की छतरी है,गाइड टूरिस्ट को बताता है। एक राजा ने अपनी पत्नी के शोक को स्थायी करने के लिए इसे बनवाया था। पत्नी की मृत्यु पर राजा उस दिन अकेले में बहुत रोया होगा। एक स्मृति लेख रानी के मरने के दिन,वार, घटी, पल, योग, नक्षत्र इत्यादि के बारे में जानकारी देता है। जानकारी देता है कि उसके स्वर्गारोहण पर कितना हिरण्य दान किया गया पर वह इस पर मौन है कि राजा की आँखों से कितना जल चुपचाप उस दिन बह गया।
गाइड कैमरे का बड़ी दक्षता से उपयोग करता है,छतरी में हिंदू इस्लामिक स्थापत्य ढूंढता है। पास में पड़ी अंकल चिप्स की खाली थैलिया इस पूरे भाव-लोक को निस्पृह अंदाज़ में देख रही है। शायद वो कह रही है कि शोक भी स्थाई नही होता। इस लगभग वीराने में नव प्रसूता कुतिया अपने शिशुओं के प्रति चिंतित है। वो हर आने वाले को संभावित शिशु- श्वान हन्ता के रूप में देखती है।पर बस्ती से दूर, इस जगह शोक बार बार मुखर हो उठता है। इस मूर्त शोक की परतें सदियों बाद अब धीरे धीरे आज़ाद होना चाहती है। समाधि लेख भी किसी दिन अपठनीय हो जायेगा। मैं, इस मेरे लिए अनाम, आत्मा को श्रद्धांजलि देता हूँ और सोचता हूँ कि क्या कोई आँख है जिसके जल में इसकी स्मृति आज भी तैरती है?

11 comments:

  1. सही है संजय भाई, एतिहा्सिक धरोहरे वाकई बदहाल है.. कुछ देखभाल की कमी से ्कुछ हमारी लापरवाही से..

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  2. उदयपुर में इस तरह की अनेक छतरियों के पास से गुजर जाता था। एक दिन रुक कर अवलोकन किया तो वैसे ही विचार आये थे, जैसे आपने व्यक्त किये।
    बहुत सशक्त अभिव्यक्ति है आप की!

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  3. एक छतरी के सम्मुख खड़े हो कर सुन्दर कल्पना की है. चित्र भी बड़ा सुन्दर है. अच्छा लगा पढ़ के .

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  4. अच्छी रचना के लिए बधाई. अगर स्त्री को इतना सम्मान जीते हुए मिल जाये तो वह इन से ज्यादा सुन्दर दिखेगा .

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  5. क्या सिर्फ राजस्थान की छतरियों में ही मुस्लिम स्थापत्य का नमूना मिलता है या फिर ऐसा सभी जगह पर है आपकी पोस्ट पढने से पहले मुझे तो ये रेगिस्तान के विश्राम स्थल लगते थे अब जाना कि ये तो किसी कि याद में बनी हुयी है , आपका धन्यवाद

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  6. बहुत अच्छा लिखा है आपने। वाकई हमारे देश के इन धरोहरों को सहेजने की बड़ी आवश्यकता है।

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  7. Sanjay ji, aapke blogpe pehlee baar aayee hun...
    Behad gehraayee aur sanjeedgeese likha hai lekh...

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  8. Aur sach kaha Nandani jine..." streeko itnaa samman jeete jee mil jaye to.."!
    Shayad kayee auraten jeete jee mar naa jayen....

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  9. सच में! प्यार और रिश्तों की तरह शोक भी स्थाई नहीं होता कितनी खूबसूरती से आपने बताया है!

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  10. इस मूर्त शोक की परतें सदियों बाद अब धीरे धीरे आज़ाद होना चाहती है। समाधि लेख भी किसी दिन अपठनीय हो जायेगा। मैं, इस मेरे लिए अनाम, आत्मा को श्रद्धांजलि देता हूँ और सोचता हूँ कि क्या कोई आँख है जिसके जल में इसकी स्मृति आज भी तैरती है.....
    samvedanshil abhivyakti....!!

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  11. this post reminded me of my childhood days,, when all the siblings went to naniji in the summer vacations and would try and find such exotic locations for our evening picnics in and around the village.

    Regards,
    Manoj Khatri

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