Thursday, July 2, 2009

क़स्बे में प्रेम- कुछ चित्र

एक
जटा शंकर जी का घर क़स्बे के इस पुराने मोहल्ले में सबसे ग़लत जगह पर था। एक अत्यन्त जटिल ज्यामितीय संरचना में बसे पुराने घरों की जमावट असंख्य वीथीयों की दुरूह प्रणाली का निर्माण करती थी। कोई गली खूब अन्दर तक जाकर किसी घर में गुम हो जाती तो कोई किसी चबूतरे पर तमाखू से दांत रगड़ती वृद्धा के पैरों तले विलीन हो जाती, और कोई अंततःक़स्बे के किसी मुख्य चौराहे पर दम तोड़ती।
जटाशंकर जी का घर इस मोहल्ले में ग़लत जगह फंसा हुआ था जिसने उनके प्रेम के आरम्भ को ही असंभव बना डाला था। उनके घर में कोई वास्तु दोष नहीं था बल्कि गृह-स्थिति और सामाजिक नियमों की संगति उनके प्रेम को असंभव बना रही थी। उनके घर से लगते और उसके पीछे के सारे मकान सगोत्रियों के थे,घर से आगे बाएँ तरफ समाज का सामुदायिक भवन था जहाँ पंचों का डेरा रहता था,आगे दाएँ तरफ़ के तीन घरों में प्रेम संभव था क्योंकि यहाँ अलग गोत्र वाले बिराजते थे पर यहाँ उनकी हम उम्र कन्या का जन्म ही नहीं हुआ और घर के ठीक सामने की गली में जटा शंकर जी का ननिहाल था जहाँ वे पैदा हुए थे।
तो यों इस मोहल्ले में भू-सामाजिक कारणों से जटाशंकर जी प्रेम ही नहीं कर पाये। उनके कदम इस मोहल्ले से बाहर उनकी २० की उम्र में पड़े जो रोज़गार की तलाश में किसी सेठ की पेढी पर सर टेकने पर ही रुके। सर, उसके बाद, उनके बुढापे तक उस पेढी से ऊंचा ही नहीं उठ पाया।
दो
बाहर से नौकरी करने इस क़स्बे में आए उस युवक ने मोहल्ले की तरफ़ जाने वाली गली के नुक्कड़ और मुख्य सड़क पर स्थित 'पुरोहित भोजनालय' के बाहर उस लड़की का इंतज़ार शुरू कर दिया जो टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज से उधर आने वाली थी,हमेशा की तरह। लड़की के आते ही वो उसे कनखियों से देखता था ताकि लोग उसके मन की थाह न ले सके। लड़की भी नहीं। पुरोहित की दाल आज अतिरिक्त तीखी थी जिसे वो प्रतीक्षा के कारण भरसक नज़रंदाज़ कर रहा था। पानी पीने के चक्कर में लड़की वहाँ से गुज़र कर गली में चली गई तो....
उसके आने की धमक वो कोसों दूर से सुन सकता था। ये एक अजीब बेचैनी थी। तभी दो चीज़ें एक साथ हुई। लड़की उसे आती दिखी और सड़क पर विदेशी युगल भी उस ओर बढ़ते दिखे। उस युगल ने माहौल को एक exotic touch दे दिया। उस युवक का ध्यान लड़की पर ही एकाग्र होता पर अचानक उस युगल ने बीच सड़क पर एक दूसरे को चूमना शुरू कर दिया। इसे देख लड़की भी हलके से ठिठकी। युवक ने लड़की की ओर देखा तो लड़की के होंठों पर अत्यन्त सूक्ष्म डिग्री की मुस्कान आ गई। लड़की उसके वहाँ खड़े होने के मंतव्य को समझती थी शायद।
तीन
पिचासीवें साल की उम्र में जटाशंकर जी उसी क़स्बे में, उसी मोहल्ले में, उसी घर में दुबारा थे। आज वे मृत्यु शैया पर थे। कई दिनों से खाना बंद था। प्राण उनके शरीर से सिर्फ़ क्षीण पकड़ द्वारा ही चिपका था। शायद प्राण बाहर निकलने का कोई मुहूर्त ही ढूंढ रहा था। वे इस जन्म में प्रेम नहीं कर पाये थे। घर के लोग कई बार उन्हें खाट से नीचे भूमि पर सुला चुके थे पर चेतना का दिया बुझने में ज़रूरत से ज्यादा समय लगा रहा था।
कोई घर में बात कर रहा था कि मोहल्ले का लड़का क़स्बे की किसी लड़की के साथ भाग गया था, अब दोनों के घरवाले राज़ी होकर उनकी शादी की तैयारियां कर रहे थे।
जटा शंकर जी के प्राण ठीक इसी वक्त मुक्त हुए।
चार
सदियों पहले जिस लड़की के लिए सिंध का राजकुमार अपने ऊँट पर यहाँ आता था। वो शादीशुदा था पर उस लड़की की एक झलक ने उसके मस्तिष्क में जो तूफ़ान खड़ा किया उससे गृहस्थी के सारे धर्म पानी मांगने लगे। उस कथा के अंत से ज़्यादा महत्व पूर्ण उस कथा के घटने में था।
आज भी इसी क़स्बे में उस लड़की के घर के खंडहर मौजूद थे। कोई पगडण्डी , कोई सड़क, कोई गली उस तरफ़ नहीं जाती थी पर कहते है क़स्बे के प्रेमी किसी तरह वहाँ पहुँच कर एक दूसरे से वादे करते थे।
तमाम असहमतियों के बावजूद लोग इस बात पर एकमत थे कि आजकल समय ठीक नहीं है।

36 comments:

  1. बहुत सत्य के करीब है ये कहानी मेरे पास शब्द नेहीं इस कि इस कलम की शान मे कुछ कह सकूँ संजय जी को बहुत बहुत बधाई

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  2. रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
    एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....

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  3. ....संजय जी ,चलचित्र की ही तरह ये कहानी सुख दुःख की परिभाषा से ऊपर ही मानी जायेगी ...आपने इसे जिस तरह लिखा है वो एक अनूठा और सारगर्भित विवरण है ...शब्द वाकई कमाल के साथ संयोजित किए है दिमागी खुराक संतुष्ट हुई ..अमूमन मैं रचनाएं शुरुआत [इंट्रो ]पढने के बाद ही पढ़ती हूँ ...बस अच्छा लगा पढ़कर ... जटा शंकर के माध्यम से एक पीढी का अन्तराल एक सामान्य होती जाती ख़ास बात को कहने और विवरण देने का तरिका खूब है लेखन यही तो है

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  4. हम अधिक कुछ नहीं कह पाएंगे. दो शब्द पर्याप्त होंगे. उत्कृष्ट लेखन.

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  5. जब भी आपको पढता हूँ निराश नहीं होता हूँ...उम्मीद के मुताबिक खुराक मिलती है जेहन को....अंदाजे बयाँ दिलचस्प है ..कथा को विघटित करके उसे जोड़ना कैसे है सब कुछ परफेक्ट ........शुक्रिया ब्लॉग जगत में आने के लिए .

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  6. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगता है ...बेहतरीन

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  7. सुंदर लघुकथाएं। पूरे औपन्यासिक विस्तार के साथ।
    बधाई।

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  8. अभिव्यक्ति का सारा-कुछ इकट्ठा । सच में सुकून देने वाली अभिव्यक्ति । धन्यवाद इस प्रविष्टि के लिये ।

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  9. आपकी इस दीर्घजीवी कहानी को पढ़ा तो कई गली मोहल्ले किसी चलचित्र की तरह घूमने लगे. सबसे बड़ी बात ये कि वे सर्वस्थानिक हैं आप चाहें जिस कस्बे में इनको देख सकते हैं. पात्र तो ऐसे रचे हैं कि वे मुझे चहलकदमी करते से दीख पड़ते हैं. डॉ. अनुराग की टिप्पणी की आखिरी पंक्ति को वो बात समझिये जो मेरे दिल में थी पर शब्दों का आकर नहीं ले पाई...कथा को विघटित करके उसे जोड़ना कैसे है सब कुछ परफेक्ट ........शुक्रिया ब्लॉग जगत में आने के लिए .

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  10. संजयभाई, पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, पढ़ा और अच्छा लगा। सचमुच यह कहानी मार्मिक है। इसमें विरल कथा रस है और संवेदनशील कल्पनाशीलता भी। बधाई।

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  11. प्रेम..

    क्या कहें.. मरी क्षमता के परे.. हकिकत को छेदती हुई.. एसे ही होती है कस्बे की कथाऐं..

    पहळी कहानी पढ़ मुझे ब्रह्मपुरी याद आ गई..:)

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  12. कितना भी उन्मुक्त समाज हो जाये, प्रेम विषयक लेखन मिलता रहेगा, शाश्वत!

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  13. पेंचदार कहानी।
    अच्छे कथ्थक हैं।
    साधुवाद।

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  14. Dr. Anurag ki baat se sahmat hoon.

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  15. bahut hi dil ke karib lagi ............sundar

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  16. कहानी शायद वो ही मन को भाती है जो होती सबकी है मगर लिखी ऐसी होती है कि अनोखी सी लगती है...और इन कसौटियों पर खरी होना ही इस कहानी की विशेषता है।

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  17. अरे क्या गज़ब लिखते हो भाई, बधाई तो स्वीकारो!

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  18. पीढियों का अन्तराल जोड़ती... प्रेम की परिभाषाएं और अभिव्यक्ति समय के साथ बदल गई है लेकिन उसकी ज़रुरत और सम्मोहन अभी तक सुरक्षित है आपके शब्दों और कथा ने कितनी खूबसूरती से पाठकों को जता दिया...

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  19. संजय भाई,
    तीन बार कहानी को पढ़ चुका हूँ.और तारीफ़ के शब्द तो पहले की टिप्पणियों में आ चुके है...कहानी इतनी रोचक है कि बांधे रखती है..वास्तव में जटाशंकर जिस प्रेम की तलाश करते ८५ शरद गुजार देता है...उसी शाश्वत प्रेम की तलाश में हर कोई है...पर जटाशंकर से सहानुभूति इसलिए भी होती है कि वह यह इस जन्म में नहीं पाया कि लड़की मिलने पर भी शायद प्रेम की खोज पूरी नहीं हो पाती है.
    कहानी का विषय भावनाओं को छू लेता है और कहानी पढ़कर जटाशंकर और उसके घर का चित्र मन में घूमने लगता है.
    प्रकाश

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  20. आपकी लेखनी को एक बार फिर सलाम। उत्‍कृष्‍ट रचना। पढ़ ली थी पहले ही, लेकिन टिप्‍पणी नहीं कर पाया था। हमारे गांव में उपलब्‍ध एयरटेल की जीपीआरएस सेवा ब्‍लॉगर पर कभी-कभी ही टिप्‍पणी की इजाजत देती है :)

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  21. वाकई समय ठीक नहीं.... व्यास जी, कथानक अच्छा था...

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  22. बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद .

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  23. I read your story congrats.I would like to suggest pl.find more real story as you know my neture.Keep it up. ---- subhash bohra

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  25. Samay wakaii theek nahin hai...bahut achchhi aur rochak post.
    Thanks for visiting my blog.
    Haya

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  26. sanjayji thanks for moral support.I assure you that in the future i will try my best, not up to your hieghts.Thanks once agaian.

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  27. This comment has been removed by the author.

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  28. My hindi is not very strong, so I am commenting in English. Very few writers possess this smooth narrative style. I loved this fabulous story.

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  29. protsahan ke liye dhanyawad.
    ishi kram main apke blog par aya...

    bahut hi achi rachna. accha laga pardh kar..

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  30. पोस्ट पढ़ते हुए बार-बार बिम्ब उभर रहे थे कि - वो कस्बा जो प्रेम में पगा हुआ था - क्या अब भी कहीं बाकी है? उम्दा कहानी और आपकी शैली प्रभावी है, एकदम गिरफ्त में लेती है. साधुवाद.

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  31. your thinking is so high you are writing about 85 year old man Jatashankar. I think no no i am sure that ----
    हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
    आग मेरे सीने मैं न सही
    आग तेरे सीने मैं न सही
    आग जलनी जरूर चाहिए

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  32. aane ka aabhar. aate rahiyega. hausalaa banaa rahega, sharaarat karne ka.

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  33. the plot is contemporary and the narrative is superb, as always.

    i would also say.. thanks for being there.

    Regards,
    Manoj Khatri

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